सामाजिक सम्प्रेषण की दृष्टि से बोली को अधिक महत्व दिया जाता है,
क्योंकि किसी भी भाषासमाज में बोलने वाले लिखने वालों से ज्यादा होते हैंं।
किसी क्षेत्र विशेष की बोली ही कतिपय कारणों से सामाजिक प्रतिष्ठा अर्जित करके भाषा रूप में स्वीकृत हो जाती है
अर्थात् बोली से ही भाषा का मानक रूप विकसित होता है।
राज भाषा –
किसी राज्य में सार्वजनिक तथा प्रशासनिक कार्यो के लिए प्रयुक्त विचार विनिमय का साधन राजभाषा कहलाता है ।
राज्य के समस्त शासनादेशों, अभिलेखों और पत्र – व्यवहार में उसी का प्रयोग किया जाता है ।
पराधीन राष्ट्र की राजभाषा उसकी राष्ट्रभाषा से भिन्न हो सकती है ।
भारत में मुगलों और अंग्रजोें के शासन काल मे क्रमशः फारसी और अंग्रेजी में राज काज होता रहा ।
राष्ट्रभाषा –
किसी राष्ट्र की परिनिष्ठित भाषाओं में से सार्वजनिक कार्यों के लिए व्यवहृत माध्यम को राष्ट्रभाषा कहा जाता है ।
यह राष्ट्र के विभिन्न भाषा भाषियों के विचार विनिमय…
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