कुमाऊँ पर मुसलमानों का शासन कभी नहीं रहा, पर कुछ चन्द राजाओं
के दिल्ली दरबार के साथ अच्छे सम्बन्ध थे.अपनी पूर्ववर्ती राजधानी चम्पावत
के पास खूना में उन्होंने दिल्ली और शेरकोट से चूड़ी बनाने वाले मनिहार बुलाकर
बसाये थे तथा परवर्ती राजधानी आलमगढ़ (अल्मोड़ा) में अपने दरबार में मुगलिया
दरबारों की तरह तमाम रिवाज अपना लिए थे और उनके अनुरूप कई विशेष कर्मचारी
भी नियुक्त किये थे. नतीजतन वहां अरबी, फारसी, तुर्की शब्दों का प्रयोग होने लगा.
इन राजकर्मियों के अलावा भी अपने कारोबार या और किसी वजह से अनेक
मुसलमान कुमाऊँ की हसीन वादियों में तशरीफ़ लाये. उनमें से जिन्हें यहाँ की
खूबसूरत वादियाँ भा गयीं, वे फिर यहीं के हो कर रह गए. उनके वंशजों की
बोलचाल के माध्यम से भी कुमाउनी में उर्दू का प्रभाव पड़ता और बढ़ता रहा.