मुसलमान

 

musal

कुमाऊँ पर मुसलमानों का शासन कभी नहीं रहा, पर कुछ चन्द राजाओं
के दिल्ली दरबार के साथ अच्छे सम्बन्ध थे.अपनी पूर्ववर्ती राजधानी चम्पावत
के पास खूना में उन्होंने दिल्ली और शेरकोट से चूड़ी बनाने वाले मनिहार बुलाकर
बसाये थे तथा परवर्ती राजधानी आलमगढ़ (अल्मोड़ा) में अपने दरबार में मुगलिया
दरबारों की तरह तमाम रिवाज अपना लिए थे और उनके अनुरूप कई विशेष कर्मचारी
भी नियुक्त किये थे. नतीजतन वहां अरबी, फारसी, तुर्की शब्दों का प्रयोग होने लगा.

इन राजकर्मियों के अलावा भी अपने कारोबार या और किसी वजह से अनेक
मुसलमान कुमाऊँ की हसीन वादियों में तशरीफ़ लाये. उनमें से जिन्हें यहाँ की
खूबसूरत वादियाँ भा गयीं, वे फिर यहीं के हो कर रह गए. उनके वंशजों की
बोलचाल के माध्यम से भी कुमाउनी में उर्दू का प्रभाव पड़ता और बढ़ता रहा.

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भिणकनुं और पौंइ बल्द

 

bhinkanu

मूल कथा : एक छियो भिणकनुं चड़ औंर एक छि पौंइ बल्द। भिणकनुं चड़ै लै घा पात
जाम करि बेर एक झाडि़ पन आपुं हुॅं घोल लगै और उमें आना पाड़ा। एक दिन चरनं चरनै
पौंइ बल्द लैं उथकैई ऐ पुज। पौंइ बल्दौक खुट झाडि़ पन पड़ और भिणकनुं चाड़काा आना फुटिगे। जब भिणकनुं आपण घोल में अयो त वील आना फुटि द्याखा। उती पन पौंइ बल्द
चरण लागि रे। भिणकनुवैल पौंइ बल्द थें जै बेर क्यो : ”पौंइ बल्दा, पौइ बल्द, त्वील
म्यारा आना किलै फोडि़ ? पौइ बल्द बुलाण : ‘मैले फोडि़ बेर जै कि फोडि़। ग्वालमुया लै
मैं कें घा नि दि। मैं घा चारण हुं अइ त म्योर खुट पडि़ बेर त्यारा आना फुटि पणि।”

भिणकनुवैल सोचि कि अगर पौंइ बल्द रोजें एसिके चरण हुँ आलौ त म्यारा दूहारा बखता
का आना लै फोडि़ द्योल कैं। वील पौंइ बल्द थैं पुछ: ”अच्छा, अगर ग्वालमुया तुकैं रोज
घा द्योलो, तब त तु म्यारा आना निं फौड़ै। पौइ बल्द बुलाण : ”ग्वालमुया म कै घा जै
दि द्यो त मै चरणैं हुं किलै उं।” भिणकनुवैले ग्वालमुया का पास जैवेर पुछ: ”ओ ग्वाल
मुया, ग्वालमुया, त्वील पौंइ बल्द कैं घा किलें निं दि।” त्वील उकैं घा निं दि। उ चरण हुँ
आछ त वील म्यारा आना फोडि़ दि।” ग्वालमुया लै कय: ”मैं पौंइ बल्द कें घा कां बटिक दिनिं। घा हरयै निं भैं।

बढि़य बात

अपनी बोली

badhiy

तुम लेखौ अर पढ़ाै यो बढि़य बात छू
आ्जि अघिल कै बढ़ाै यो बढि़य बात छू

जैकि ऊँचाई तक क्वे लगै नै पुजीं
वी सिखर पर चढ़ाै यो बढि़य बात छू

दूर भौते छ जा्ण क्वे दगा्ड़ लै नहां
माठू – माठू रड़ाै यो बढि़य बात छू

सद्गुणन सित आपणि मित्रता करि लियौ
अवगुणन सित लड़ाै यो बढि़य बात छू

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पश्चिमी कुमाउनी

 

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1 – खसपर्जिया – पश्चिमी कुमाउनी की प्रतिनिधि बोली .खसपर्जिया अल्मोडा़ के
बारामण्डल परगने में बोली जाती है ।इस परगने में स्यूनरा, महरूडी , तिखून,
कालीगाड़, बौरारौ, कैडा़रौ ,अठागुली ,रिउणी, द्वारसौ, खासपर्जा, उच्यूर तथा बिसौत
पटि्टयों की गणना होती है ।इस बोली का प्रमुख केन्द्र खासप्रजा पट्टी में आने वाला
क्षेत्र है, जहॉ राजा के खास कर्मचारी रहते थे, जब चन्द राजाओं ने अपनी राजधानी
अल्मोडा़ स्थानान्तरित की ।

उच्चारण सम्बन्धी विशेषताएॅ –

ध्वनि –
न – ण : पानि – पाणी
स – श : भैंस – भैंश

प्रवृत्ति –
व्यंजनान्त : च्यल – च्या्ल्
लोप : चेलि – चेइ्

व्याकरण सम्बन्धी विशेषताएॅ-

परसर्ग –
कर्म/सम्प्रदान : कै, कणि, हूँ , हुणि, लिजी
करण/अपादान : लै, हाति, है, बटि,बेर, थैं

क्रिया –
वर्तमान : चाहता हॅूं > चॉंछ
भूत : था/थे – छि

8. आवारगी

 

aawargi

कुछ उजाले भी हमें तीरगी दे सकते हैं
कुछ अंधेरे भी हमें रोशनी दे सकते हैं

पेड़ लग जाएँ तो बस जाती है बस्ती जैसी
पेड़ कट जाएँ तो आवारगी दे सकते हैं

इनके होने से ही होता है सुहाना मौसम
ये हवाओं को नई ताजगी दे सकते हैं

इनको काटोगे तो मर जाएंगी सारी नस्लें
इनको रक्खोगे तो ये जिन्दगी दे सकते हैं

साले

अपनी बोली

sale

दिन्य : आज उनूकि दोकान मैं बडि़ भीड़ हैरे ल !
पर्क्य : उनूले् वां जां तां अंग्रेजि मैं गालि लेख राक्छि।
दिन्य : कि ले्ख रा ?
पर्क्य : साले साले साले साले।

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लिपि

 

lipi

उत्तराखंड के गढ़वाल मंडल में गढ़वाली तथा कुमाऊँ मंडल में कुमाउनी भाषाओं
की लिपि देवनागरी ही है. कुमाउनी के प्राचीनतम नमूने चौदहवीं शताब्दी पूर्वार्ध
के शिलालेखों और ताम्रपत्रों के रूप में उपलब्ध हैं, जिनकी भाषा में तत्सम
(संस्कृत के समान) शब्दों का प्रयोग परिलक्षित होता है.

बोलचाल में विकसित होती हुई कुमाउनी में एक ओर तद्भव (संस्कृत शब्दों से बने
; जैसे – शशक > सस, मूषक > मुस आदि) शब्दों का प्रयोग बढ़ा, तो दूसरी ओर
नवान्तुकों के संपर्क से अन्य देशी एवं विदेशी भाषाओं के शब्दों का प्रचलन बढ़ा.
आजकल कुमाउनी उस हिंदी के प्रभाव में है, जो रोमन लिपि में लिखी जाती है.

सानुवाद

 

sanuvad

कुमाऊँ के कथा साहित्य के विविध रूपों के विश्लेषण एवं वर्गीकरण हेतु किए गए
प्रयास में अभी तक लोगों द्वारा लोगों को सुनाई गई कुमाऊँ की उपलब्ध लोक कथाओं
को दस वर्गों में विभाजित किया गया है। यहां पर प्रत्येक वर्ग में दो-दो कहानियां और
उनके मूल रूप के साथ उनका हिंदी अनुवाद भी देने का प्रयास किया जा रहा है –

01 – पशु-पक्षी संबंधी कथाएं : कुमाऊँ की पशु-पक्षी संबंधी कथाओं में कुमाऊँ के
लोकविश्वास परिलक्षित होते हैं। पंचतंत्र की कथाओं की तरह इनमें भी स्वस्थ मनोरंजन
के साथ लोकशिक्षा का तत्व समन्वित होता है। इन कथाओं में पशु पक्षी मनुष्यों की
भांति आचरण करते हैं, अत: उनकी मूर्खता या चतुराई से संबंधित प्रसंग श्रोताओं को
पर्याप्त रोचक लगते हैं।

भीड़

अपनी बोली

bheed

अब मीना बाजार मैं कि नै मिलन्नय यार
तल्ली जा्न खन है गया तुम एस्यैं तैयार

तुम एस्यैं तैयार आज की सोच रा मन मैं
सांच्चि कून्नयूं भौत भीड़ हुंछि इस्टेसन मैं

फिर वांई कै हिट दिन्नौहा लीबेर झोला
बुड़्याकाल कांइ गाडि़ हाडि़ तल्ली पेच्ची रौला

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पूर्वी कुमाउनी

 

askoti

4 – अस्कोटी –
पिथौरागढ. जनपद के अस्कोट क्षेत्र में बोली जाने के कारण इसे अस्कोटी कहते हैं ।
अस्कोट तथा उसके चारों तरफ के गांव ही इस बोली का प्रमुख क्षे़त्र हैं। इस बोली पर
जोहारी, नेपाली, राजी, सौका व सीराली बोलियों का प्रभाव दिखाई पड.ता है।

उच्चारण सम्बन्धी विशेषताएॅं –

ध्वनि –
ग – ड़. : नांगड़ – नाड.ड़
म – प : खन्मरिछा – खन्परिछा

प्रवृत्ति –
उकारत्त्व : खान – खानु
महाप्राणत्व : जन – झन

व्याकरण सम्बन्धी विशेषताएॅं –

परसर्ग –
कर्म/सम्प्रदान : स , खिन
करण /अपदान : थै, है, भटि

क्रिया –
भूत एक वचन : था – थ्यो
भूत बहु वचन : थे – थ्या