फायदा खैरख़्वाह होने से
गर न रोका गुनाह होने से
अनगिनत जानवर हुए गायब
जंगलों के तबाह होने से
गुमशुदा हो गईं कई नस्लें
बेवजह बेपनाह होने से
जिन्दगी का शिकार होता है
सिर्फ नीयत सियाह होने से
फायदा खैरख़्वाह होने से
गर न रोका गुनाह होने से
अनगिनत जानवर हुए गायब
जंगलों के तबाह होने से
गुमशुदा हो गईं कई नस्लें
बेवजह बेपनाह होने से
जिन्दगी का शिकार होता है
सिर्फ नीयत सियाह होने से
पेड़ के ऊपर जरा सा सोचिए
आज घर जाकर जरा सा सोचिए
पंछियों की महफिलों की हलचलें
क्यों हुईं कमतर जरा सा सोचिए
मौसमों के वक़्त में तब्दीलियाँ
हो रहीं क्योंकर जरा सा सोचिए
किस वजह से आदमी की अक्ल पर
पड़ गए पत्थर जरा सा सोचिए
ये माना कल जो होना है उसे वह आज कर लेगा
हकीकत को मगर कैसे नजर अन्दाज कर लेगा
कटे जंगल घटी बारिश बहुत कम हो गया पानी
हवाओं को भी क्या ये आदमी नाराज कर लेगा
नहीं हैं पेड़ – पौधे फूल – खुशबू दूर मीलों तक
ये मौसम मनचले भँवरों को बेआवाज कर लेगा
वो दिन कितना हसीं होगा किसी की जिंदगानी का
कि कोई आएगा और इश़्क का आगाज कर लेगा
आदमी और पेड़ का
पुराने जमाने से संग साथ रहा है।
उस समय जब सभ्यता और संस्कृति
के अंकुर पल्लवित नहीं हो पाए थे,
प्रकृति का अपरंपार वैभव ही
मानव जीवन का आधार था।
हालांकि धीरे धीरे – मगर
पेड़ से जमीन, जंगल से बस्ती,
बस्ती से गांव, गांव से कस्बे,
कस्बे से शहर और शहर से महानगर
तक पहुंचे हुए तथा स्मार्टसिटी उन्मुख
मानव का प्रकृति प्रेम कभी कम नहीं हुआ।
मौजूदा हालात में भी बगीचों, पार्कों,
आंगनों, क्यारियों, गमलों, डिब्बों,
चित्रों और गीतों में प्रकृति
की छटा को समेट लेने का प्रयास
हमारे तह ए दिल में दुबके
उसी रिश्ते को प्रमाणित करता है।