होने से

 

05

 

फायदा खैरख़्वाह होने से
गर न रोका गुनाह होने से

अनगिनत जानवर हुए गायब
जंगलों के तबाह होने से

गुमशुदा हो गईं कई नस्लें
बेवजह बेपनाह होने से

जिन्दगी का शिकार होता है
सिर्फ नीयत सियाह होने से

Advertisement

सोचिए

sochiye

पेड़ के ऊपर जरा सा सोचिए
आज घर जाकर जरा सा सोचिए

पंछियों की महफिलों की हलचलें
क्यों हुईं कमतर जरा सा सोचिए

मौसमों के वक़्त में तब्दीलियाँ
हो रहीं क्योंकर जरा सा सोचिए

किस वजह से आदमी की अक्ल पर
पड़ गए पत्थर जरा सा सोचिए

कर लेगा

kar lega

ये माना कल जो होना है उसे वह आज कर लेगा

हकीकत को मगर कैसे नजर अन्दाज कर लेगा

कटे जंगल घटी बारिश बहुत कम हो गया पानी

हवाओं को भी क्या ये आदमी नाराज कर लेगा

नहीं हैं पेड़ – पौधे फूल – खुशबू दूर मीलों तक

ये मौसम मनचले भँवरों को बेआवाज कर लेगा

वो दिन कितना हसीं होगा किसी की जिंदगानी का

कि कोई आएगा और इश़्क का आगाज कर लेगा

बचाना होगा

 bachana


कुदरती रंग से धरती को सजाना होगा
दर्द के गाँव में खुशियों को नचाना होगा

कोई आरा न चले कोई कुल्हाड़ी न चले
प्यार से पेड़ की शाखों को लचाना होगा

हर जगह पेड़ यहाँ पेड़ वहाँ पेड़ लगें
कूचे-कूचे में यही शोर मचाना होगा

अपनी हस्ती को मिटाया सदा हमारे लिए
हमको हर हाल में पेड़ाें को बचाना होगा

पेड़

ped hain
आदमी की पुरानी खुशी पेड़ हैं
सच कहा जाए तो ज़िंदगी पेड़ हैं

यह दिलों का दिमागों का अहसास है
अनथकी सांस की ताजगी पेड़ हैं

जंगलों में बगीचों में या गाँव में
कुदरती हुस्न की सादगी पेड़ हैं

जो ख़ुदाई की ख़िदमत में मशगूल है
मुद्दतों से वही बन्दगी पेड़ हैं

पेड़ लगाकर 

SONY DSC
हरा करो हर एक गाँव को पेड़ लगाकर
बढ़ जाने दो घनी छाँव को पेड़ लगाकर

सूने आसमान में बादल को न्यौता दो
रोको मिट्टी के कटाव को पेड़ लगाकर

धरती की छाती पर हुआ कुल्हाड़ी से जो
भरना होगा उसी घाव को पेड़ लगाकर

इस कुदरत के साथ बताते हो अरसे से
अब दिखलाओ उस लगाव को पेड़ लगाकर

पेड़ाे

pedo
सब्ज पत्तों को हिलाओ पेड़ाे
खुश्क सांसों को सजाओ पेड़ाे

अपना रिश्ता बहुत पुराना है
उसी रिश्ते को निभाओ पेड़ाे

हम समाए तुम्हारे जंगल में
तुम भी हर घर में समाओ पेड़ाे

हम बचाएंगे नस्ल पेड़ाें की
इसलिए हमको बचाओ पेड़ाे

ग़ज़ल

gazlon

ग़ज़लों के पेड़ :

कागज पर ग़ज़लों के पेड़ उगाए हैं
चार-चार शेरों में भाव जगाए हैं

पहले शेर जड़ाें की माफिक गहरे हैं
और दूसरे तने बने इतराए हैं

शेर तीसरे शाख-टहनियों से फैले
चौथे में पत्ते-फल-फूल समाए हैं

ऊपर से इरशाद कर रहे हैं बादल
वाह-वाह करने को पंछी आए हैं

ग़ज़ल

pedon

पेड़ाें की गजलें :

साँसों को महकातीं पेड़ाें की गजलें
सोए भाव जगातीं पेड़ाें की गजलें

कुदरत और आदमी के सम्बन्धों की
हर अहमियत बतातीं पेड़ाें की गजलें

जीव-जन्तुओं औ जंगल के रिश्ते का
हर  एहसास करातीं पेड़ाें की गजलें

कभी डराकर कभी डांटकर लोगों को
बहलातीं-समझातीं पेड़ाें की गजलें

आदमी और पेड़ :

A&P

आदमी और पेड़ का
पुराने जमाने से संग साथ रहा है।
उस समय जब सभ्यता और संस्कृति
के अंकुर पल्लवित नहीं हो पाए थे,
प्रकृति का अपरंपार वैभव ही
मानव जीवन का आधार था।

हालांकि धीरे धीरे – मगर
पेड़ से जमीन, जंगल से बस्ती,
बस्ती से गांव, गांव से कस्बे,
कस्बे से शहर और शहर से महानगर
तक पहुंचे हुए तथा स्मार्टसिटी उन्मुख
मानव का प्रकृति प्रेम कभी कम नहीं हुआ।

मौजूदा हालात में भी बगीचों, पार्कों,
आंगनों, क्यारियों, गमलों, डिब्बों,
चित्रों और गीतों में प्रकृति
की छटा को समेट लेने का प्रयास
हमारे तह ए दिल में दुबके
उसी रिश्ते को प्रमाणित करता है।