इंसानियत :

insaniyatगजल : इंसानियत :

राह में वो मकाम आया है
वक्त भी सोच के थर्राया है

हाथ में फैसले का खंजर है
सर पे इंसानियत का साया है

पत्थरों का जवाब ईंटों से
यही इंसाफ क्या नुमाया है

आज दरियादिली बरतने का
हर लहर से पयाम आया है

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गजल : जिंदगी :

jindgiगजल : जिंदगी :

टूटने और बिखर जाने का
जिंदगी नाम है मर जाने का

सिर्फ उम्मीद की कश्ती लेकर
दरिया ए गम में उतर जाने का

गांव से भागकर शहर आकर
किसी होटल में ठहर जाने का

घर या बाजार या दफ्तर या कहीं
रोज इधर और उधर जाने का

गजल :: भाई ::

bhaaiगजल :: भाई ::

कौन सी आग रही है भाई
जिंदगी भाग रही है भाई

जगमगाती हुई रोशनियों में
रात भी जाग रही है भाई

नींद सोने के लिए आंखों से
चार पल मांग रही है भाई

भूख ही मुफलिसी की चादर का
अनमिटा दाग रही है भाई

तेरी दुनिया में हमारी ढपली
बेसुरा राग रही है भाई