कोई :

koiगजल: कोई :

कोई हमें बताए जाएँ कहाँ दिवाने
अपना ही दिल कभी जब अपना कहा न माने

इस जि़्न्दगी को लेकर पहुँचा कहाँ नहीं मैं
सबने अलग बताए इस जि़्ान्दगी के माने

यह हुस्न नहीं बदला और इश्क नहीं बदला
आए गए न जाने कितने नए जमाने

यह वक्त नहीं मेरा यह वक्त है कामों का
वो काम जो होने हैं नाचीज के बहाने

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सादा पान :

 

sada panगजल: सादा पान:

कहना मुश्किल दो पल की पहचान में
क्या-क्या गुजरी इस नन्हीं सी जान में

तेरे प्यार ने ख़ुशबू और सुरूर भरा
जर्दा डाल दिया है सादे पान में

आँखों वाले पैगामों के हरफों के
अक्स उभर आए अपने ईमान में

बिना लिखा ख़त होठों में क्यों दबा लिया
आओ इसे डाल दो मेरे कान में

आस का दीपक

aas kaगजल: आस का दीपक

हम समझते थे कि नश्तर का चलाना है बला
जब चला तो ये पता भी ना चला कब ये चला

घाव होने में नहीं लगता कभी कोई बखत
घाव भरने में लगा जो वक्त वो सबको खला

वक्त भर देता है सारे घाव छोटे और बड़े
इसलिए धीरज से थोड़ा काम लेना है भला

जब निराशा का अँध्ेोरा हर तरफ बढ़ने लगे
ए मेरे दिल जैसे तैसे आस का दीपक जला

खयालों का सूत :

khayalon

गजल : खयालों का सूत :

वक्त कैसा भी हो आता है चला जाता है
आदमी है कभी रोता कभी मुस्काता है

हर अँधेेरे ने निहारा है सितारों का कपास
हर उजाले ने खयालों का सूत काता है

ये तो मुमकिन है कि सबके लिए खुशियाँ ना हों
गम के एहसास से तो हर किसी का नाता है

बहार पतझड़ों की राख से पनपती है
इसीलिए उसे पतझड़ ही रास आता है

न रोको :

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गजल : न रोको :

ख्वाहिश नहीं करते हो तो करने से न रोको
जीने नहीं देते हो तो मरने से न रोको

तय है जरूर आएगा पतझड़ का जमाना
पर आस की कलियों को संवरने से न रोको

ये बात गवारा है कि उल्फत न करेंगे
पर शहर की गलियों से गुजरने से न रोको

झड़ जाएंगे तो झूम के महकाएंगे गुलशन
ये बीज हवाओं में बिखरने से न रोको

अमराइयां :

amraiyanगजल : अमराइयां :

घटाएं झूमकर छाने लगी हैं
हवाएं नाचने गाने लगी हैं

धनुष सा तानकर सूरज की किरनें
रंगीले तीर बरसाने लगी हैं

वो बूंदें जो जमा हैं आसमां में
जमीं की प्यास भड़काने लगी हैं

तुम्हारी याद की अमराइयां फिर
महकने और बौराने लगी हैं

इंसानियत :

insaniyatगजल : इंसानियत :

राह में वो मकाम आया है
वक्त भी सोच के थर्राया है

हाथ में फैसले का खंजर है
सर पे इंसानियत का साया है

पत्थरों का जवाब ईंटों से
यही इंसाफ क्या नुमाया है

आज दरियादिली बरतने का
हर लहर से पयाम आया है

गजल : जिंदगी :

jindgiगजल : जिंदगी :

टूटने और बिखर जाने का
जिंदगी नाम है मर जाने का

सिर्फ उम्मीद की कश्ती लेकर
दरिया ए गम में उतर जाने का

गांव से भागकर शहर आकर
किसी होटल में ठहर जाने का

घर या बाजार या दफ्तर या कहीं
रोज इधर और उधर जाने का

गजल :: भाई ::

bhaaiगजल :: भाई ::

कौन सी आग रही है भाई
जिंदगी भाग रही है भाई

जगमगाती हुई रोशनियों में
रात भी जाग रही है भाई

नींद सोने के लिए आंखों से
चार पल मांग रही है भाई

भूख ही मुफलिसी की चादर का
अनमिटा दाग रही है भाई

तेरी दुनिया में हमारी ढपली
बेसुरा राग रही है भाई