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परिचय :
गीतकार शैलेन्द्र ‘शैली’ द्वारा 5 लुबीना, मुंबई में आयोजित महफिल में काव्य पाठ
फर्क
मैं कोई जिस्म नहीं हूं जो यहां हाजिर हूं
मैं तो वो हूृं कि जो तुम हो औ बकाया सब हैं
जिस तरह तुम कहीं मशगूल रहा करते हो
उस तरह मैं भी कोई काम किया करता हूं
तुमको जो चाहिए दुनिया में मुझे भी चाहिए
तुममें और मुझमें कोई फर्क नहीं है शायद