खबर का बहुवचन रूप होता है अखबार। जिस तरह अखबार का पन्ना पलट देने
से किसी खबर की तल्खी कम नहीं होती, उसी तरह किसी खबर पर अखबार के
संपादक के नाम पत्र लिख देने भर से भी किसी समस्या से मुक्ति नहीं मिलती।
चंद लोगों की वजह से उत्पन्न परेशानियों को आम समस्या कहकर या किसी
समस्या को निबंध अथवा वादविवाद का विषय बनाकर छोड़ देना पर्याप्त नहीं।
सबसे पहले हमें दिल से समाज को अपना और अपने को समाज का मानना
होगा, फिर दिमाग से किसी भी सामाजिक समस्या को सार्वजनिक चुनौती के
रूप में स्वीकार करना पड़ेगा। समस्या के निवारण के लिए समाज का एकजुट
होना जरूरी है। इसलिए नहीं कि संघर्ष हो, बल्कि इसलिए कि परिस्थिति बदले,
उसमें समय रहते सुधार हो। एकजुट होने पर बातों बातों में ही कोई ऐसी बात
पैदा हो सकती है, जिसमें समाधान की आशा की किरण दिख जाए।