प्यार के अंकुर :

pyarविचार : प्यार के अंकुर :

लगातार अनेक प्रकार के विरोधाभासों को चुपचाप झेलते रहने की आदत धीरे-धीरे
सुनार की हथौड़ी की तरह मानव मन को छोटी-छोटी चोटों से ऐसा आकार प्रदान
करती है, जिससे वह श्लालाघनीय लगता है, सराहनीय बनता है। यही ‘सहिष्णुता’
आदमी को इंसान बनाती है और भारतीय संस्कृति की विशेषता भी मानी जाती है।

सतत सहिष्णुता चेतना का संस्कार करती है और संस्कार ही व्यक्ति और समाज के
अन्तर्सम्बन्धों को नियंत्रित करते हैं। इतिहास साक्षी है कि हिंसा से घृणा उपजती है,
प्यार नहीं। घृणा से युद्ध जन्म लेता है, शान्ति नहीं और युद्ध में जीतने वाले का
हारने वाले से कम नुकसान नहीं होता; इसलिए बेहतर यही है कि –

मन का मानसरोवर
दोनों हाथ उलीचें
आओ अपने बीच
प्यार के अंकुर सींचें

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रहन-सहन :

rahanविचार : रहन-सहन :

एक मान्यता है कि जीव को शरीर और शरीर को स्थान किस्मत से नसीब होता है।
जहां रहना पड़ता है, वहां सहना पड़ता है। इसीलिए किसी जीव, या उसके सामूहिक
जीवन निर्वाह के तौर-तरीके को ‘रहन-सहन’ कहा जाता है। कथनी में यह दो शब्दों
का जोड़ा जितना सरल प्रतीत होता है, करनी में उतना होता नहीं ।

एक ही छत के नीचे निवास करने वाले एक ही परिवार के लोग जिन तनावों से ग्रस्त
रहते हैं, उनकी वजहों में अपने ही परिजनों के तरह तरह के स्वभावों को सहने की
मजबूरी भी होती है। ‘सहन’ की तरह ‘स्वभाव’शब्द भी कहने सुनने में जितना आसान
लगता है, उतना होता नहीं।

अभिमान के आगे लगकर ‘स्व’ अगर उसका मान बढ़ा देता है, तो भाव के आगे जुड़कर
वह उसका भाव ऊंचा कर देता है। परिजनों के विविध स्वभावों के अतिरिक्त पड़ोसियों के
विभिन्न चरित्रों या सहपाठियों अथवा सहकर्मियों के अनेक प्रकार के आचरणों को सहते हुए
उनके बीच में रहना दांतों और दाढ़ों के बीच में जीभ की जैसी स्थिति से कम नहीं।

अहंकार :

ahankarविचार : अहंकार :

मानवीय सभ्यता के इतिहास में हिंसा और अहिंसा की निर्णायक भूमिका रही है।
समय परिवर्तन के साथ साधन भले ही बदलते रहे हों, पर दोनों का भाव आज
भी जस का तस है। रामायण-महाभारत से लेकर अब तक के प्रसिद्ध महाकाव्यों
में इन्हीं के माध्यम से अच्छे और बुरे का रहस्य स्पष्ट किया गया है। दस्तूर सा
है कि हिंसाप्रिय लोग असभ्य तथा अहिंसाप्रिय लोग सभ्य माने जाते है।

जिस तरह शहर में रहने वालों से गांव में रहने वालों की तुलना में अधिक सभ्य
होने की अपेक्षा की जाती है, उसी तरह आदमी के अन्दर रहने वाले जानवर से
जंगल में रहने वाले जानवर की अपेक्षा कम जंगली होने की नाकाम उम्मीद करना
अस्वाभाविक नहीं; मगर अफसोस कि अहंकार या क्रोध के लिए जंगल,गांव अथवा
शहर वगैरह सब बराबर होते हैं।

इस वृत्ति को आनुवंशिक की बजाय आनुजैविक भी कहा जा सकता है, क्योंकि जल
थल की तमाम योनियों में लगातार पशुत्व के आदी रहे आदमी को इंसान बनने में
वक्त लग जाता है। फिर अगर इनमें वाकई ईश्वर का अंश मौजूद है, तो इनकी ज्यादती
बरदाश्त करने की मजबूरी भी माइने रखती है। उनके बीच या उनके साथ रहने का
भी कोई मतलब जरूर है।

रियायत :

riyayatविचार : रियायत :

एक ओर आधुनिक माॅल्स जिन्दगी की तमाम जरूरियात को पूरा करने के लिए जिन्सों की दरों में छूट
के साथ लुभावने आॅफर विज्ञापित करते हैं, तो दूसरी ओर नए-नए अस्पताल जिस्म की तरह तरह की
बीमारियों का इलाज करने के लिए दरों में रियायत के साथ विशेष शिविर भी आयोजित करने लगे हैं।

जो लोग उपर्युक्त माॅल्स का असली लुत्फ उठाते हैं, उन्हें ज्यादा पैसा कमाने की योग्यता प्रदान करने वाले
शिक्षा संस्थान अपने छात्रावासों की सुविधाएं भी विज्ञापित करते हैं। जिन घरों के वासी उपर्युक्त अस्पतालों
का फायदा उठाते हैं, उन घरों को भव्यता प्रदान करने वाले आधुनिक निर्माण संस्थान ऋण संबंधी सुविधाओं
के भी आकर्षक विज्ञापन छपवाते हैं।

बस स्टेण्ड के अतिरिक्त बस के बाहर खिड़कियों के नीचे तो रंगीन टाइप के बड़े विज्ञापन होते ही हैं, बसों के
भीतर भी शर्तिया इलाज की तर्ज पर छोटे विज्ञापन चिपके रहते हैं। रेलवे स्टेशनों के अलावा कुछ ट्रेनों में भी
ऐसे विज्ञापनों की झलक देखी जा सकती है। सड़क के किनारे वाले ढाबों तथा सार्वजनिक शंका निवारण स्थलों
जैसी अब ऐसी कोई भी जगह विज्ञापन विहीन नहीं रही,जहां आदमी की उपस्थिति की तनिक भी संभावना हो।

विचार : जानकारी :

jankariविचार : जानकारी :

घर बैठे बाजार की जानकारी की सुविधा मिलने के पश्चात् नन्हें-मुन्नों ने बाप की उंगली
छोड़कर विज्ञापनों की उंगली पकड़ ली और घरवालों की नसीहत के हिसाब से सामान लाने
की बजाय टीवी की हिदायत के मुताबिक चीजें खरीदना शुरू कर दिया। वे समझ गए कि
सारी कंपनियां वस्तुतः उन्हीं की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए चिंतित हैं।

वे जानते हैं कि कौन सा साबुन मैल के अन्दर छिपे हुए कीटाणुओं को धो डालता है,
कौन सा उन्हें समझा-बुझा कर कहीं और चले जाने के लिए रिक्वेस्ट करता है और
कौन सा उन्हें थप्पड़ मारकर भगा देता है। मजे की बात यह कि टीवी के विज्ञापन ही
अपने दर्शकों को बताते हैं कि कौन सा टीवी खरीद कर विज्ञापन देखें।

पत्र-पत्रिका, रेडियो, टीवी, कंप्यूटर, मोबाइल आदि, के अलावा सड़कों पर लगे हुए
बड़े-बड़े होर्डिंग्स भी तेज-रफ्तार गाडि़यों के यात्रियों के दृष्टिपथ से गुजरते हुए, कई
वस्तुओं का विज्ञापन करते हैं। कभी-कभी लम्बे-लम्बे रास्तों पर एक कतार से दिखने
वाले छोटे-छोटे होर्डिंग्स ऐसे लगते हैं, मानो किसी कंपनी के कार्यकर्ता पंक्तिबद्ध होकर
जुलूस निकाल रहे हों।

विचार : जनसंचार :

jansancharविचार : जनसंचार :

किसी कार्य या उत्पाद के संदर्भ में जनसंचार माध्यमों द्वारा सामान्यजन को मनाने की कला उसकी ख्याति
या बिक्री बढ़ाने के काम आती है। एक जमाना था, जब पिता अपने पुत्र को उंगली पकड़ा कर बाजार घुमाने
ले जाता था और धीरे-धीरे पुत्र यह जानने लगता था कि कौन सी दुकान में कौन सी चीज मिलती है।

बच्चे जैसे-जैसे बड़े होते, वैसे-वैसे यह भी जानते जाते कि कौन से स्कूल में अच्छी पढ़ाई होती है और किस अस्पताल में अच्छी दवाई मिलती है। बहुत सी बातें उन्हें दोस्तों, फेरी वालों या मजमा लगाने वालों के माध्यम
से पता चल जाती थीं। फिर पोस्टरों, अखबारों या पत्रिकाओं के द्वारा भी उनके पास इतनी जानकारियों का ढेर
लग जाता था कि वे उसी के बूते पर एक दूसरे के सामान्य ज्ञान की परीक्षा लेने के लायक हो जाते थे।

जमाने ने करवट बदली, तोे यह जिम्मेदारी रेडियो ने उठा ली। वह बड़े आकर्षक अंदाज में चीजों की बिक्री बढ़ाने का काम करने लगा। फिर जब यह काम दूरदर्शन वालों के हाथ आया, तो तरह-तरह का सामान बनाने वालों की बल्ले-बल्ले हो गई और उसके बाद जब दुनिया भर के चैनलों ने टीवी दर्शकों की विविध मनोवृत्तियों का अतिरंजन प्रारंभ किया, तब विज्ञापनों के कथ्य एवं शिल्प में भी अभिनवता आई।

विचार : विज्ञापन :

vigyapanविचार : विज्ञापन :

आज का युग विज्ञापन का युग है। विज्ञापन अर्थात् विशिष्ट ज्ञापन यानी विशेष सूचना। अंग्रेजी में
इसके लिए प्रयुक्त एडवर्टाइजमेण्ट लेटिन शब्द ‘एडवर्टाइज’ से व्युत्पन्न हुआ है, जिसका मतलब
होता है पलटना। विशेष सूचना से पुरानी जानकारी को बदलना। एक आकर्षक संकेत कि पलट तेरा
ध्यान किधर है, तेरे काम की सही बात या नई चीज इधर है।

संसार का सबसे पहला विज्ञापन ‘रेशमी वस्त्र बुनकर संघ’ द्वारा लगभग डेढ़ हजार वर्ष पूर्व मध्य
प्रदेश के मंदसौर – प्राचीन नाम दशपुर – के कुमारगुप्त कालीन एक सूर्य मन्दिर में लगवाया गया था।
तत्कालीन भाषा में रचित इस काव्यात्मक विज्ञापन का आशय यह था कि ‘चाहे जितना भी यौवन तन
पर फूट रहा हो या चाहे जितने प्रकार से श्रंगार किया हो , पर समझदार नारी तब तक अपने प्रिय के
पास नहीं जाती, जब तक कि वह हमारे द्वारा बुने रेशम का जोड़ा न पहन ले।’

‘नारी जन प्रियमुपैति न तावदेस्या
यावन्न पट्टमय वस्त्र युगानिधत्ते’

खुशनसीब :

khushआज आप जब मेट्रो में घुसते है, तो वहां जो लोग बैठे हुए हैं, उनमें बहुत कम ऐसे खुशनसीब
होते हैं, जो घुसते ही बैठ गए थे। ज्यादातर लोगों को काफी देर खड़े रहने के बाद ही बैठने की
जगह मिली होती है। इसी तरह बड़े बड़े संस्थानों के ऊंचे ऊंचे पदों पर बैठे हुए लोग भी जब वहां
आए थे, तब उनके भावहीन चेहरे देखने लायक थे।

मुंह में चांदी का चम्मच लेकर पैदा होने वाले ज्यादा नहीं होते। आम आदमी अगर आज किसी
खास पोजीशन में है, तो वहां तक वह ऐसे ही नहीं पहुंचा होता है। उसके पीछे उसकी लगन होती
है, मेहनत होती है। वह सिर्फ परिस्थितियों से ही नहीं जूझता, मनस्थितियों को भी झेलता है;
इसलिए बिग बाॅस के घर में आराम से रहता है।

रहन सहन :

rahan

कुछ किताबों में मानव देह दुर्लभ मानी जाती है। वह सेलिब्रिटीज के लिए ही संभव है।
ऐरा गैरा नत्थू खैरा बिग बाॅस के घर के बारे में नहीं सोच सकता, जहां एक ही छत
के नीचे कई तरह के रिश्तों के साथ समय बिताना पड़ता है। वो रिश्ते भी तो शायद
सबकी किस्मत में ही लिखे होते हैं, जिन्हें कोई बदल नहीं सकता।

जिसके साथ रहना पड़ता है, उसका स्वभाव भी सहना पड़ता है। घर में, स्कूल में,
काॅलेज में, आॅफिस में – हर जगह एडजस्ट करना पड़ता है। पहले अस्तित्व के लिए
संघर्ष, फिर संघर्ष के लिए संघर्ष; जहां तन कर खड़े होने के लिए पैसे या पोजीशन
की बजाय रीढ़ की हड्डी ज्यादा जरूरी होती है।

बिग बाॅस का घर :

 

bigboss

यह संसार बिग बाॅस का घर है। लोग उसे भगवान के नाम से भी जानते हैं।
लोगों को उम्मीद है कि वह उनके जायज या नाजायज टाइप के सारे काम
एक दिन जरूर करवा देगा। इसलिए अपनी किसी भी तरह की तकलीफ का
इजहार करने के लिए वे कन्फेशन रूम में जाना या उसके दरबार में हाजरी
लगाना या उसकी खि़दमत में चढ़ावा चढ़ाना नहीं भूलते।

वे जानते हैं कि यहां भाग्य सबको कर्म के हिसाब से फल देता है। भाग्य शब्द
भाग से बना है, भाग यानी हिस्सा। टाइम से हिस्सा मिलने पर ऐसा लगता
है कि वह मेहरबान है और सबको देता है या देर होने पर कहते हैं कि उसकी
मर्जी के बिना पत्ता तक नहीं हिल सकता। प्रतिकूल परिस्थितियों में यह भी

सुना है कि उसकी लाठी में आवाज नहीं होती।