विचार : प्यार के अंकुर :
लगातार अनेक प्रकार के विरोधाभासों को चुपचाप झेलते रहने की आदत धीरे-धीरे
सुनार की हथौड़ी की तरह मानव मन को छोटी-छोटी चोटों से ऐसा आकार प्रदान
करती है, जिससे वह श्लालाघनीय लगता है, सराहनीय बनता है। यही ‘सहिष्णुता’
आदमी को इंसान बनाती है और भारतीय संस्कृति की विशेषता भी मानी जाती है।
सतत सहिष्णुता चेतना का संस्कार करती है और संस्कार ही व्यक्ति और समाज के
अन्तर्सम्बन्धों को नियंत्रित करते हैं। इतिहास साक्षी है कि हिंसा से घृणा उपजती है,
प्यार नहीं। घृणा से युद्ध जन्म लेता है, शान्ति नहीं और युद्ध में जीतने वाले का
हारने वाले से कम नुकसान नहीं होता; इसलिए बेहतर यही है कि –
मन का मानसरोवर
दोनों हाथ उलीचें
आओ अपने बीच
प्यार के अंकुर सींचें