लोकसाहित्य: अन्य विषयक लोकोक्तियां:

anyलोकसाहित्य: अन्य विषयक लोकोक्तियां:

अन्य विषयक लोकोक्तियों के कई प्रकार हैं; जैसे –
भाग्य संबंधी:

तू जालै वां
भाग जालो कां
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क्वे कूं के खूं
क्वे कूं के में खूं

कर्म संबंधी:

जैलि करि सकि, वीकि खेति
जैलि पढ़ि सकि, वीकि पोथि

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आपुणि आपुणि कै गे
चार दिन रै, ल्है गे

स्थान संबंधी:

द्याप्त देखण जागसर
गंगा नाणी बागसर

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पार गाड़ा रौत
खाण बखत खुष हुणि
दिण बखत मौत

राज संबंधी:

बांजा घट की भाग उघौनी
बांजी गौ को दूद छीनी
उल्टी नाली भरी दीनी
सुल्टी बतै बेर लीनी

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गोरु मरौ त मर
बाछ मरौ त मर
सेर भरि दूद
दि जाइ कर

कृषि संबंधी:

खेती मल लिबेर
राजा बल लिबेर

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मडुवा राज
जब द्यख ताज

वर्षा संबंधी:

बरखा लिबेर घस्यार
आग लिबेर रस्यार

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द्यो पड़ल कै सबनैले जाणि
बज्जर पड़ल कै कैले नि जाणि

ऋतु संबंधी:

चैमास को जर
राजा को कर

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दस दसैं बीस बग्वाल
कुमूं बिसंग फुलि भंग्वाल

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लोकसाहित्य: सामाजिक लोकोक्तियां:

samajikलोकसाहित्य: सामाजिक लोकोक्तियां:

सामाजिक: सामाजिक लोकोक्तियों के कई प्रकार हैं; जैसे –

जाति संबंधी:

बामण च्यलक उजणन ऐ रस्यार बण
जिमदारक च्यलक उजणन ऐ घस्यार बण

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जिमदार हुणि विचार नै
भैंस हुणि कच्यार नै

नारी संबंधी:

सैणि हुणि चूनै कि सौत
चोर हुणि खखारै भौत

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मुरुलि बजूंछै मैं त्यार नि औनी
बिणाई बजूंछी मैं त्यार नि औनी

धर्म संबंधी:

जो द्यल तन हुणि
ऊ द्यल कफन हुणि

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बिन गुरु बाट नै
बिना कोड़ी हाट नै

आचार संबंधी:

स्वा्र हुणि मरि गो नि कौन
आ्ग हुणि निमै गो नि कौन

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च्यल सुदरौं बबा का हात
च्येलि सुदरैं मै का हात

व्यक्तित्व संबंधी:

जां जां रघू पौण
वां नि रौ कुटी कौण

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सिरू सिर धार
बिरू बिर धार
टुकन्या बिचै धार

भोजन संबंधी:

गूड़ खै गुलैनी नै
लूण खै लुणैनी नै

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खा्ण हूं नि भै गेठी
कमर बांधि पेटी

नीति संबंधी:

राज करण आपुण देस
भीख मांगण परदेस

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मैंसक उजणन ऐ ग्वाल बण
लुवक उजणन ऐ फाल बण

लोकसाहित्य: लोकोक्तियां:

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लोकसाहित्य: लोकोक्तियां:

लोक साहित्य का प्रणयन वस्तुतः लोक जीवन द्वारा होता है, अतः इसमें लोक जीवन की ही अभिव्यक्ति होती है और यह लोक जीवन में ही संचरण करता है। जिस तरह लोकगीत जीवन की अनुभूतियों से जन्म लेते हैं, उसी तरह लोकोक्तियां भी जीवन के अनुभवों की दुहिताएं होती हैं।

संक्षिप्त, रोचक एवं सारगर्भित होने के कारण लोकोक्तियां आसानी से लोगों की जुबान पर चढ़ जाती हैं और प्रसंगानुसार प्रयोग में लाई जाती हैं। लोकगीतों की तरह लोकोक्तियों को भी नई पीढ़ियां पुरानी पीढ़ियों से भाषिक परंपरा के रूप में प्राप्त करती हैं और प्रयोग में लाकर आगे बढ़ा देती हैं। उक्ति होने के कारण लोकोक्ति का न तो आकार निष्चित है और न ही स्वरूप, तथापि इनका प्रयोग करते समय वक्ता किसी षब्द विषेष पर जोर अवष्य देता है।

स्वतःस्फूर्त होने के कारण लोकोक्ति के लिए वाक्य संरचना अथवा छन्दानुषासन के नियमों की कोई बाध्यता नहीं होती, फिर भी कथन को विषिष्ट बनाने के लिए यदा-कदा आषुकवि जैसी तुकबन्दी का प्रयोग भी परिलक्षित होता है। इसमें कोई संदेह नहीं कि लोकोक्तियां गेय नहीं होतीं, पर तुकांत होने के कारण क्षणिकाओं के समान प्रतीत होती हैं, जिनके कुछ अति प्रचलित उदाहरण आगे प्रस्तुत किए जा रहे हैं –

प्रकार :

 

 

prakarलोकगीतों की विषयवस्तु का प्रमुख आधार प्रेम होता है, जिसकी परिधि
में प्रियजन, परिजन, ससुराल वाले, मायके वाले, सखी-सहेली, यार-दोस्त,
फूल-फल, वन-उपवन, पशु-पक्षी, चांद-तारे, देवी-देवता वगैरह आते हैं।
कभी अपने बचपन की, कभी गांव-घर की अथवा प्रिय की स्मृति गीत में
ढलती है तो कभी क्षणिक यौवन की चंचलता, जीवन यापन की जटिलता
या सामाजिक परिवर्तन की आहट गीत बनकर मुखरित होती है।

कुमाऊँ के लोकसाहित्य में मुखरित जनजीवन देश के अन्य हिन्दी भाषी क्षेत्रों
के लोक साहित्य से अधिक भिन्न नहीं है। यही कारण है कि अनेक लोकगीत
कुमाऊं, गढ़वाल,ब्रज या अवध में यत्किंचित् अन्तर के साथ समान रूप से गाए
जाते हैं। कुमाउनी में संस्कार गीतों के अतिरिक्त नृत्य प्रधान, अनुभूति प्रधान,
तर्क प्रधान, संवाद प्रधान ही नहीं; कृषिगीत, रितुगीत, पूजागीत, बालगीत
आदि विविध प्रकार के लोकगीत उपलब्ध होते हैं।

मनोविनोद

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6 – पहेलियां :

पहेलियां मनोविनोद का सहज साधन मानी जाती हैं।
कुमाऊं में पहेलियां ‘आहण’ या ‘आण’ के नाम से जानी जाती हैं।
इन्हें भी कई वर्गों में रखा जाता है – भोज्य पदार्थ संबंधी,घरेलू वस्तु संबंधी,
जीव-जन्तु संबंधी, प्रकृति संबंधी, अंग-प्रत्यंग संबंधी, कृषि संबंधी आदि।

7 – बालगीत

कुमाउनी लोक साहित्य में बालगीतों का अपना अलग स्थान है।
संख्या की दृष्टि से अधिक न होते हुए भी ग्राम्य परिवेश में इनका प्रचलन बदस्तूर जारी है।
इनकी शब्दावली अर्थ की बजाय लय और तुक का अधिक अनुसरण करती है।
कुमाउनी में मुख्यत: दो प्रकार के बालगीत मिलते हैं – हिलोरी तथा खेल संबंधी।

8 – नवगीत

आजकल अलग-अलग म्यूजिक कंपनियों द्वारा बनाई जा रही कुमाउनी गीतों
की आँडियो कैसेट/सीडी/वीसीडी के लोक शैली में रचित गीत पर्याप्त प्रचलन में हैं।
इन्हें भी प्रेम संबंधी, विरह संबंधी, हास्य संबंधी, भक्ति संबंधी, बेरोजगारी संबंधी,,
फौज की नौकरी संबंधी आदि वर्गों में विभाजित किया जा सकता है।

लोकसाहित्य

bagesar

कुमाऊँ

3 – लोकगाथाएं :

कुमाऊँ में प्रचलित छोटी-बड़ी लगभग एक सौ लोकगाथाएं

अपने पात्रों के माध्यम सेस्थानीय जन जीवन की विविध झांकियां दिखाती हैं।

विषय वस्तु के आधार पर इनके भी अनेक भेद किए गए हैं; जैसे – पारंपरिक गाथाएं,

पौराणिक गाथाएं, धार्मिक गाथाएं, वीर गाथाएं आदि।

4 – लोककथाएं : कुमाऊँ में अनेक प्रकार की लोक कथाएं प्रचलित हैं।

वर्ण्य-विषय की दृष्टि से इनके भी कई रूप मिलते हैं; जैसे – पशु-पक्षी संबंधी कथाएं,

भूत-प्रेत संबंधी कथाएं, धर्म संबंधी कथाएं, प्रकृति परक कथाएं, नीति परक कथाएं,

व्रत परक कथाएं, कारण मूलक कथाएं, हास्य मूलक कथाएं, बाल कथाएं आदि।

5 – लोकोक्तियां : अपनी संक्षिप्तता के कारण गागर में सागर

का आभास कराने वाली लोकोक्तियों को अनुभवों की बेटियां माना जाता है।

कुमाऊँ में आम बोलचाल में प्रचलित लोकोक्तियों को भी कई भागों में बांटा गया है;

जैसे – सामाजिक, दार्शनिक, ऐतिहासिक, जीव-जन्तु संबंधी, कृषि संबंधी, नीति परक, हास्य परक आदि।

उदाहरण – द्याप्त देखण जागसर, गंग नाण बागसर