
लोककथा: चल चल तुमड़ि बाटौं बाट
अब तो षेर, बाघ और भालू तीनों ही बुढ़िया से एक साथ ”तुम्हें हम खाते हैं, हम तुम्हें खाते हैं“ कहने लगे। बुढ़िया बोली: देखो, तुम तीनों इस तरह आपस में लड़ते रहे तो आखिर कौन-कौन खाएगा मुझे। मैं अब यह करती हूँ कि उस सामने वाले पेड़ की चोटी पर चढ़ जाती हूँ। तुम तीनों उसी पेड़ के नीचे बैठे रहो। मैं पेड़ की चोटी से छलांग लगाऊँगी, तुम तीनों में से जो भी मुझे पकड़ लेगा, वही मुझे खा लेवे।“
इस बात पर तीनों सहमत हो गये। बुढ़िया तो पेड़ पर चढ़ने के लिए रवाना हुई और तीनों उसके पीछे जाकर पेड़ के नीचे बैठ गये। षेर, बाघ और भालू तीनों ही आँखें फाड़ कर ऊपर की ओर देख रहे थे। पेड़ पर जाकर बुढ़िया ने पोटली खोली और कहा: ”देखो, देखो, मैं यह कूदी, वह कूदी।“ ऐसा कहती कहती बुढ़िया मुट्ठी भर-भर कर नमक मिर्च नीचे की ओर फेंकने लगी। षेर, बाघ और भालू की आँखों में नमक मिर्च गिरी तो उनकी आँखें बन्द हो गई। दर्द से पागल होकर वे एक दूसरे को नोचने लगे। बुढ़िया पेड़ से नीचे उतर आई और अपने घर की ओर चल दी। इसी कारण तो कहते हैं कि बाघ षक्तिषाली है न भालू, सबसे षक्तिषाली है बुद्धि।
षिक्षाप्रद कथाओं से मनोरंजन तो होता ही है। इसके अतिरिक्त मनुष्यों के बुद्धि कौषल का परिचय भी मिलता है। कहीं बुद्धि का चमत्कार मिलता है तो कहीं किसी जाति के गुण विषेष पर प्रकाष पड़ता है। कहीं सूत्र रूप में बहुमूल्य उपदेष दिए गए हैं, तो कहीं कर्मफल की व्याख्या की गई है। कहीं भावी संकटों से बचने की चेतावनी दी गई है। कहीं विषुद्ध हास्य उत्पन्न कराया गया है। इस प्रकार ये कथाएं मानव जीवन के सभी पक्षों से संबंध रखती हुई परोक्ष रूप में जीवन की षिक्षा देकर सामाजिक आदर्षों को स्पष्ट करती हैं।