रोशन :

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ये रिश्ता क्या कहलाता है, सुहानी सी एक लड़की, दिया और बाती के अलावा स्टार प्लस के सीरियलों प्रतिज्ञा, बहनें, हमारी देवरानी, विदाई, ससुराल गेंदा फूल, सबकी लाडली बेबो, सजन घर जाना है अथवा इमेजिन के सीरियलों जमुनिया, काशी, ज्योति, बंदिनी, देवी, सर्वगुणसंपन्न अथवा सोनी के सीरियलों गोद भराई, बात हमारी पक्की है, मान रहे तेरा पिता आदि धारावाहिकों में भी नारी जीवन का भावनात्मक संघर्ष अधिक उजागर हुआ है।

सब के साथ देखे जाने वाले तारक मेहता का उल्टा चश्मा, लापता गंज, जुगनी चली जलंधर, मनी बेन डाॅट काॅम में भी नारी पात्रों का बहुत बोलबाला है। ‘एफ आइ आर’ की चंद्रमुखी चैटाला का तो कहना ही क्या है। वाकई आज नायिका केवल सीरियलों की कहानियों में ही नहीं, जिंदगी की हकीकत में भी पूर्णतः सक्रिय है और हर क्षेत्र में अपना नाम रोशन कर रही है।

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आजकल :

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टीवी चैनलों पर दिखाए जा रहे नायिका प्रधान सीरियलों ने प्रस्तावित महिला आरक्षण के प्रतिशत
को काफी पीछे छोड़ दिया है। लगभग सभी चैनलों पर नारी विषयक कहानियों को ज्यादा तरजीह
दी जा रही है। इनमें भी आंचलिक कहानियों की ओर विशेष झुकाव है, नतीजतन धारावाहिकों के
पात्रों के समाज, संस्कृति और भाषा में भी तबदीली आ रही है।

जी टीवी पर दिखाए जाने वाले धारावाहिकों में झांसी की रानी, अगले जनम मोहे बिटिया ही
कीजो, यहां मैं घर घर खेली, छोटी बहू, पवित्र रिश्ता, दो सहेलियां, 12/24 करोलबाग या
कलर्स पर प्रदर्शित बालिका वधू, गंगा, बैरी पिया, उतरन, ना आना इस देस लाडो व स्वरागिनी
की कहानियां प्रायः नारी पात्रों के इर्द गिर्द ही ज्यादा घूमती हैं।

टाइटल :

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TV Celebs Goldie Behl launches “Thoda Hai Bas Thode Ki Zaroorat Hain” Show on Colors at Kamalistan

धारावाहिक ‘मेरा नाम करेगी रोशन’ का टाइटल फिल्म ‘एक फूल दो माली’ के एक गीत के टुकड़े में थोड़ा सा संशोधन करके बनाया गया है । गीतांश है – ‘मेरा नाम करेगा रोशन’। जाहिर है कि यहां पर नाम रोशन करने वाला कोई नायक नहीं, बल्कि नायिका है। इसी तरह संशोधन करके फिल्मों के नाम भी रोशन होते हैं; जैसे – जिस देस में गंगा रहता है।

इस तरह किसी पाॅपुलर गाने के बोलों में से फिल्म के लिए नाम चुनने का रिवाज नया नहीं है। बार बार सुने हुए होने की वजह से फिल्मी गानों के बोल लोगों के दिलों में उतरे हुए होते हैं; जैसे – प्यार किया तो डरना क्या, जब प्यार किसी से होता है, दिल वाले दुल्हनिया ले जाएंगे, रब ने बना दी जोड़ी, आशिक बनाया आपने वगैरह।

टाइटल के रूप में किसी लोकप्रिय गीत की पंक्ति या उसका अंश लयात्मक होने के कारण आसानी से जुबान पर चढ़ जाता है, इसलिए धारावाहिकों के शीर्षकों के चयन में भी यह कवायद की जाती रही है; जैसे – अंग्रेजी में कहते हैं कि, चांद के पार चलो, ससुराल गेंदा फूल, नन्हीं सी कली मेरी लाड़ली, दो हंसों का जोड़ा, लागी तुझसे लगन, सजन रे झूठ मत बोलो, थोड़ा है बस थोड़े की जरूरत है इत्यादि।

फुलझड़ी :

 

 

fuljhadiसी आइ डी में हंसी मजाक की फुलझड़ी सुलगाने का जिम्मा सामान्यत: फ्रेडरिक के
कंधों पर रहा है, जो कभी आत्मा या भूत अथवा कभी अपनी वाइफ के जिक्र के बहाने
सीरियस माहौल को हल्का करने में असफल रहते हैं। किसी प्रकरण के प्रारंभ में कभी कभी
उनसे जूनियर विवेक भी उनके साथ कोई छोटा मोटा मजाक कर लेता है।

देखने वाली बात यह है कि इंस्पेक्टर दया की अनुप-िस्थति में तुरंत दरवाजा तोड़ने को आतुर
फ्रेडरिक सीनियर आँफीसरों के प्रति विनम्रता दिखाने तथा जूनियर आँफीसरों पर रौब गांठने में
कतई कंजूसी नहीं करते। कमरे की तलाशी, घटना स्थल की छानबीन या संदिग्धों से पूछताछ
करते वक्त भी उनकी अदाकारी में किसी चीज का अभाव उनकी अलग छवि को ही पुष्ट करता है।

समस्या विश्लेषण हेतु आम तौर पर अटपटे पर कभी कभी सटीक तर्क देने वाले फ्रेडरिक लाश का
फोटो लेने, फिंगर पिंट उठाने या टायर अथवा जूते की छाप उतारने में माहिर लगते हैं। उनके
मोटापे और अजीब-ओ-गरीब हरकतों के अतिरिक्त उनके बोलने के अंदाज से भी अनेक हास्य की
स्थितियां उपजती हैं, जिनका असर केवल दृश्य में ही नहीं, स्क्रिप्ट में भी दिखाई देता है।