दोहावली : लिल :
अक्तूबर मैं रामलिल हुंछि
जब हर एक साल
वाईं देखिनान गदा धनु
बान खड्ग और ढाल
सेस्नि भेस मैं मैस और
बुड़ा रोल मैं ज्वान
बार बाज्य तक खोम्च वाल
सब्बै तिर बेचनान
इंतजार मैं बैठ रौ
कुक्र लिबेर बिस्वास
क्वे त आल एस खान्य जो
मी लै देल एक गास