मन :

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एक एहसास है
मन तो आकाश है

जाने क्या चाहता जाने क्या खोजता
क्या कोई सिलसिलेवार इतिहास है
मुद्दतों से भटकता है बेचैन क्यों
उस खुशी के लिए जो नहीं पास है

जिंदगी है कथा
यह उपन्यास है
मन तो आकाश है

कोई भी काम होता है तब ही शुरू
जब कि मन में उपजती नई आस है
दो ही चीजें जहां में मिलें हर जगह
एक तो प्यार है दूसरी घास है

प्यार विश्वास है
घास उल्लास है
मन तो आकाश है

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मन :

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एक आभास है
मन तो आकाश है

देह का तत्व पर देह में ही नहीं
या तो बाहर है या आस ही पास है
बेसहारे की सरहद नहीं है कहीं
सिर्फ फैलाव आता इसे रास है

अनकही आस है
अनबुझी प्यास है
मन तो आकाश है

उंची उंची उड़ानें भरे है सदा
चाल इसकी गजब है अनायास है
खाब में भी भटकता है जागे में भी
क्या पता कौन सी लालसा खास है

मोह संसार है
द्रोह संन्यास है
मन तो आकाश है

मन का सितार :

man

सूना सा लागे संसार
छेड़ो प्रिय! मन का सितार

पेड़ों की शाखों पर बैठ गई शाम
दिन भर के थके पांव ढूंढें आराम

मंद हुई नदिया की धार
छेड़ो प्रिय! मन का सितार

नीड़ों में बंद हुए कलरव के गान
पंखों में सिमट गई दूर की उड़ान

अंतर से उठती पुकार
छेड़ो प्रिय! मन का सितार

देह :

deh

जरा जर्जरित देह
स्वयं के लिए बवाल बनी
जिंदगी आज सवाल बनी

बचपन की चंचल निर्झरिणी
नदिया बनी जवानी की
चंट इंद्रियों ने लहराकर
पनघट पर मनमानी की

सूख गया जब स्रोत
रेत जी का जंजाल बनी
जिंदगी आज सवाल बनी

फुटकर में बिक गई उमरिया
लाए थे जो थोक में
भोगों के तैराक हर्ष
खुद डूब गए जब शोक में

जीने की हर चाह
मौत की खास दलाल बनी
जिंदगी आज सवाल बनी

सहिष्णुता :

 

sahishnu

छल किया ढहते कगारों ने
खुश्क रेतीले किनारों ने

जिंदगी में जब लगी ठोकर
आदमी ने क्या किया अक्सर
मान करके बात किस्मत की
अपने दिल को खुद तसल्ली दी

कुछ मदद की ऐतबारों ने
सब्र सिखलाया सहारों ने

बन गई हर आग चिंगारी
खो गई क्योंकर अकड़ सारी
तैश में आकर भड़कने से
रोक रक्खा है पड़ाेसी के

टूटते घर की दरारों ने
या कि कुदरत के इशारों ने