कविता : नियति
जीवन पथ की चढ़ाई में
अपने हाथ में होने के बावजूद
वह सब नहीं हो पाता
जो होना चाहिए
जीवन पथ के उतार पर
अपने हाथ ढीले पड़ते ही
वह सब होने लगता है
जो होना होता है
कविता : नियति
जीवन पथ की चढ़ाई में
अपने हाथ में होने के बावजूद
वह सब नहीं हो पाता
जो होना चाहिए
जीवन पथ के उतार पर
अपने हाथ ढीले पड़ते ही
वह सब होने लगता है
जो होना होता है
कविता :: अगर ::
काली रात के अंधेरे को
चीरने की कोशिश में लगे
छोटे से दिए का विश्वास
अगर सूरज की पहली किरन
आने तक नहीं डगमगाता
तो सवेरा हो जाता है
दैवी आपदा को झेलने की
कोशिश में लगे
मासूम बच्चों का विश्वास
अगर कोई सहारा
मिलने तक नहीं डगमगाता
तो जीवन संवर जाता है
ढीठ पेड़ की छाल को
बेधने की कोशिश में लगे
खट्टे मीठे फलों का विश्वास
अगर कली के
फूटने तक नहीं डगमगाता
तो फूल खिल जाता है
कोई फासला नहीं है
जमीन और आसमान के बीच में
जहां पे जमीन खतम होती है
वहीं से आसमान शुरू होता है
सूरज की थकी हुई किरनें जब
प्यासे आसमान के
अभावों का संदेश लेकर
समंदर तक पहुंचती हैं तब
खारा पानी आहें भरता है
जिनसे आसमान की
प्यास बुझाने वाले बादलों का
सिलसिला पैदा होता है
मगर उन बादलों का पानी
आसमान के गले के नीचे
नहीं उतर पाता
तो जमीन पे बिखर जाता है
जमीन, जिसे आसमान की बजाय
ज्यादा जरूरत है पानी की
कोई फासला नहीं है
जमीन और आसमान के बीच में
तुम भले ही
ये विश्वास कर लो
कि उजाला
अंधेरे का दुश्मन है
मगर मेरा दिल
कतई तैयार नहीं
अब इस बात पर
यकीन करने को
मेरे हिसाब से
ये दोनों
एक ही थैली के
चट्टे बट्टे हैं
इन्हीं की मिलीभगत से
रात और दिन
बारी बारी से
गद्दी पर बैठते हैं
एक समझौता है
इन दोनों के बीच
हम सबको भरमाने का
या बरगलाए रखने का
ये हमें
अलग अलग मानते हैं
और हम इन्हें
अलग अलग समझते हैं
हम हंसते हैं
हमें देखकर
भूले से भी
यह न समझना
हम ग़म को जानते नहीं या
दुख को पहचानते नहीं हैं
हमने उसे खूब भोगा है
शिद्दत से बरदाश्त किया है
सच तो यह है
हम लोगों ने
उससे ही
हंसना सीखा है
कभी कभी तो उसे देखकर
भी अब हमें हंसी आती है
कभी तरस भी आ जाता है
कभी आंख भी भर आती है
क्या होता है यौवन ?
विष्ठा के उत्पादक तन में
भोगों के आराधक मन में
या कि इंद्रियों के कानन में
होली का आयोजन ?
जाती पीढ़ी का अंधापन
आती पीढ़ी का आंदोलन
या अपने अपने वंशों की
मूलवृत्ति की जूठन ?
जन्मजात अधिकार व्यष्टि का
चिरनूतन कर्तव्य स्रष्टि का
या ‘एकोहं बहुस्याम’ की
इच्छा का स्पंदन ?
आप्न खुट्ट मैं आफी
किलै बनकाटि हान्नौहा
छाडि़ छुडि़ बेर घरबार
यरौ तुम कां जान्नौहा
हंला कि खोरि फुटि
च्यूड़ भट्ट भुटि
दिन्नौहा कसि ढोक
लगैबेर अच्छत पिठ्यां
मासला भाण कुण
सिखला अवगुण
छाडि़ छुडि़ बेर इसकूल
खराब गिंज तान्नौहा
गोठ अड़ान्नो
बाच्छ खड़ान्नो
गोरू दिन्नौ एक तोप्पो्
तोप्पो् मंतर मौ जस हुंछ
एक्कै छिट्टै ले्
च्या से्त है जां
छाडि़ छुडि़ बेर एस तोप्पो्
बजारौ च्या खान्नौहा
नारिंगै दानी
आलु खुर्सानी
खूब हुनान फल फूल
अगर मिहनत करि संक्छा
हर बिभाग है
मदत मिलन्नै
छाडि़ छुडि़ बेर एसि ठौर
भाज्न अस्सल मान्नौहा