लोकभाषा: परिवर्तन 1
हिन्दी भाषी क्षेत्र के लोग हिन्दी के अतिरिक्त अपनी मातृबोलियों का भी सम्यक् रूप से प्रयोग करते हैं, जिनसे प्रभावित हिन्दी के विभिन्न रूपों को हिन्दी की क्षेत्रीय शैलियाँ माना जाता है। इन शैलियों में पाये जाने वाले अन्तर को परिवर्त कहते हैं। उदाहरण के तौर पर कुमैयाँ के गणनावाचक शब्दों में उनचास को उन पचास और उनसठ के बाद साठ के स्थान पर सटी कहकर गणना की जाती है ; यथाः उनसटी, साटी, इकसटी, बासटी, तिरसटी आदि। ग्यारह से अठारह तक अन्त्य ‘ह’ का उच्चारण नहीं किया जाता, जैसेः ग्यार, बार, तेर, चैद, पन्द्र, सोल, सत्र, अठार। इसके अतिरिक्त निम्नलिखित परिवर्तन भी दृष्टव्य हैंः
1. ओष्ठीकरणः
विवृत ‘व’ का संवृत ‘ब’ के रूप में ओष्ठ्य उच्चारणः
वानर > बानर
दूर्वा > दुब
जवाब > जुबाब
विवाह > ब्या
2. अनुनासिकीकरणः
निरनुनासिक ध्वनियों का सानुनासिक उच्चारणः
भेजता है > भेंच्छ
लड़ाई > लंड़ै
पैसा > पैंस
जेवर > जिंवर क्रमशः