सिनेमा: रहस्य रोमांच प्रधान – एक:

rahasya 1सिनेमा: रहस्य रोमांच प्रधान – एक:

हिंदी की रहस्य और रोमांच से भरी सवाक् फिल्मों के अंतर्गत 1931 में अबुल हसन, 1932 में भूतिया महल व अलीबाबा चालीस चोर, 1933 में आब ए हयात व मायाजाल, 1934 मेंगुल सनोवर व तिलस्मी हीरा, 1935 में जादुई डण्डा व जादुई घोड़ा, 1938 में भेदी त्रिशूल, 1939 में सन आॅफ अलादीन व गुल ए बकावली, 1940 में अनार बाला व जादुई कंगन आदि अनेक फिल्में उल्लेखनीय हैं, जिन्हें काफी लोकप्रियता प्राप्त हुई।

1941 में जादुई बंधन, 1943 में भागता भूत, 1944 में जादुई किस्मत, 1945 में अलादीन, 1946 में अलीबाबा, अरेबियन नाइट्स, हूर ए बगदाद, मैजिक कैप व बगदाद का चोर, 1947 में बुलबुल ए ईरान, गुल ए बकावली, अंगूर बाला व जादुई रतन, 1948 में गैबी तलवार, जादुई चित्र, जादुई बंसरी व जादुई शहनाई, 1949 में अलादीन की बेटी, जादुई सिंदूर, भेदी बंगला, महल, तिलस्मी खंजर, माया महल आदि रहस्य-रोमांच से परिपूर्ण फिल्मों का निर्माण हुआ।

1951 में नगीना, 1952 में बगदाद जलपरी, नीलम परी व पाताल भैरवी, 1953 में अलिफ लैला व गुल सनोवर, 1954 में लालपरी, मीनार व हूर ए अरब, 1955 में बगदाद का चोर व तातार का चोर, सन आॅफ अलीबाबा व चिराग ए चीन 1956 में अरब का सौदागर, बसरे की हूर, बगदाद का जादू व गुल ए बकावली, 1957 में माया नगरी व परिस्तान, 1958 में अलादीन का चिराग, पाताल पुरी, स्वर्ण सुंदरी, मधुमती व माया बाजार आदि फिल्में बनीं।

उक्त रहस्य रोमांच प्रधान फिल्मों के संदर्भ में श्री बी. एन. शर्मा ने अपनी पुस्तक ‘सवाक् भारतीय हिंदी फिल्म्स’ में लिखा है कि ‘‘ ऐसी फिल्में जो बनती आई हैं, उनमें वही घिसी पिटी शैली है – उड़ती दरी का दिखाया जाना, सिम सिम कहकर दरवाजों का खुलना, चिराग के घिसते ही विशालकाय जिन्न का प्रकट होना और कहना हू हा हा हा, मेरे आका! आदि। इससे कुछ परिष्कृत और सहज ग्राह्य रूप धार्मिक फिल्मों में दिखाया जाता है, जो फोटोग्राफी के चमत्कार का ही विकसित प्रमाण है।’’

‘‘जादुई और धार्मिक फिल्मों की फोटोग्राफी में थोड़ा सा अंतर प्रतीत होता है। जादुई फिल्मों में चमत्कार के साथ डरावनी आवाज तथा भयानक सैट दिल दहलाने वाले होतं हैं। धार्मिक फिल्मों में भगवान की असीम कृपा का चमत्कार बताया जाता है; जैसे – जल्दी जल्दी सब्जी का कटना, पकवानों का तैयार हो जाना, समुद्र में से भगवान का धरातल पर आना, आकाश मार्ग से भगवान का तथा देवी देवताओं का धरती पर प्रकट होना और संगीत की टिक टक टिक, खन खन खन ध्वनियों के साथ बारीक परंतु प्रिय आवाज का जो सामंजस्य दिया जाता है, वह निःसंदेह प्रशंसनीय ही कहा जाएगा। इसे ट्रिक फोटोग्राफी कहा गया है।’’ क्रमशः

Advertisement

Published by

Dr. Harishchandra Pathak

Retired Hindi Professor / Researcher / Author / Writer / Lyricist

Leave a Reply

Fill in your details below or click an icon to log in:

WordPress.com Logo

You are commenting using your WordPress.com account. Log Out /  Change )

Twitter picture

You are commenting using your Twitter account. Log Out /  Change )

Facebook photo

You are commenting using your Facebook account. Log Out /  Change )

Connecting to %s