लोकभाषा: प्रभाव:
प्रागैतिहासिक काल में यहाँ आग्नेय परिवार की भाषा का प्रयोग करने वाली जातियाँ रहती थी। आग्नेय कुल की भाषा मुण्डा में संख्याओं को बीस के समूह में गिनने की प्रणाली है, जो काली कुमाऊँ के गाँवों में आज भी परिलक्षित होती है। एक सौ की संख्या का बोध कराने के लिए ‘पाँच बिसि’ कहा जाता है। उक्त आदिम जातियों के पश्चात् यहाँ कश्मीर-हिमांचल की ओर से खस जाति प्रविष्ट हुई, जिसकी भाषा की बहुत सी विशेषताएँ वर्तमान में पाई जाती हैं ; जैसेः
अघोष महाप्राण > अघोष अल्पप्राण : हाथ > हात
सघोष महाप्राण > सघोष अल्पप्राण : दूध > दूद
अर्धस्वरों य/व के स्थान पर ज/ब का उच्चारण आम बात हैः यजमान > जजमान, बनवास > बनबास। रेफ प्रायः स्वरयुक्त होकर उच्चरित होता हैः धर्म > धरम, प्राण > परान आदि।
एक या एकाधिक स्वरों और व्यंजनों के योग से अक्षर तथा एक या एकाधिक अक्षरों के योग से शब्द बन जाते हैं ; जैसेः
उ : वह – एक स्वर / एक अक्षर
इन : ये – एक स्वर / एक व्यंजन
राम : नाम – एक स्वर, दो व्यंजन
इन्त्यान : परीक्षा – दो स्वर / चार व्यंजन / दो अक्षर
शब्द में स्वरों और व्यंजनों के बने अक्षरों के संधिस्थल में यति की स्थिति से बोली की प्रवृत्ति ज्ञात होती है। इस प्रकार व्यक्त शब्द में अनुभूति के कारक दो तत्व होते हैंः स्वर तथा घात। स्वर से अर्थभेद और घात से उसकी तीव्रता प्रकट होती हैः
उदात्त स्वर अनुदात्त स्वर
आ्द (अदरक)
का्न (कन्धा)
डा्ण (चोटी)
बा्ण (बाँट)
आद (आद्रता)
कान (कर्ण)
डाण (दण्ड)
बाण (हिस्सा) क्रमशः