लोकगीत : जनजीवन :

janjivanलोकगीत : जनजीवन :

कुमाऊं में प्रचलित छोटी बड़ी लगभग एक सौ लोक गाथाएं अपने प्रमुख पात्रों के
माध्यम से स्थानीय जनजीवन की सांगोपांग अभिव्यक्ति करती हैं। इनके कथानायक
जन्मजात वीर और साहसी होते हैं, जो विषम परिस्थितियों का सामना करते हुए
आत्म-वलिदान कर देते हैं। फिर किसी जादुई कृत्य से वे पुन: जीवित हो उठते हैं।

लोक गाथाओं में पौराणिक, ऐतिहासिक और काल्पनिक वृत्तांतों का ऐसा सम्मिश्रण
हुआ है कि इन्हें लोक महाकाव्य भी कहा जा सकता है। सुविधानुसार ये गाथाएं एक
रात से लेकर कई रातों तक लगातार गाई जा सकती हैं। नंदादेवी की ‘बैसी’ तो प्रसिद्ध
लोक परंपरा के अनुसार कभी बाइस दिनों तक अटूट क्रम से गाई जाती थी।

लोहाघाट-चम्पावत मार्ग पर खूना के पास सड़क से नीचे वाली मस्जिद उन
मुसलमानों की है, जिनके पूर्वजों को चम्पावत के राजा ने यहाँ चूड़ियाँ बनाने के
लिए बसाया था; क्योंकि खच्चरों पर लदकर आने की वजह से कांच या लाख की
नाजुक चूड़ियाँ अक्सर रास्ते में ही टूट जाया करती थीं.

मनिहार कहलाने वाले इन मुसलमानों की अगली पीढ़ियों ने बोल-चाल के लिए
कालांतर में चम्पावत की कुमैयाँ बोली को ही अपना लिया था, जिसका प्रयोग
वे आज भी करते हैं; पर उनकी उच्चारण शैली कुमैयाँ भाषियों से थोड़ी सी
भिन्न है और वे अरबी-फ़ारसी शब्दों का अधिक प्रयोग करते हैं.

जागर की लय तथा उनके गायन में प्रयुक्त होने वाले वाद्य उपकरणों के आधार पर
उसके तीन भेद हैं।
हुड़किया जागर – हुड़के में गाया जाने वाला गद्यात्मक शैली का जागर –
इसे ‘ख्याला’ भी कहते हैं,
डमरिया जागर – डमरू में गाया जाने वाला और
मुरयौं – मृदंग में गाया जाने वाला जागर।
(डॉ० प्रयाग जोशी : कुमाउनी लोक गाथाएं : पृष्ठ 5)

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Published by

Dr. Harishchandra Pathak

Retired Hindi Professor / Researcher / Author / Writer / Lyricist

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