सिनेमा: साहसिक:
किसी असाधारण काम को दृढ़तापूर्वक करने की प्रवृत्ति साहस कहलाती है। मानव मन में यह प्रवृत्ति सृष्टि के प्रारंभ से ही पाई जाती है। शुरू में जंगलों में संघर्षरत मानव के उत्साह और जीने के लिए जानवरों का शिकार करने की आवश्यकता ने ही साहस को लगातार बढ़ाया होगा। तब संभवतः मानव ने भावना की अपेक्षा साहस और पिचार की अपेक्षा बल पर अधिक भरोसा किया होगा और अब सामान्य स्थितियों में यद्यपि बल की अपेक्षा बुद्धि को अधिक महत्व दिया जाने लगा है, तथापि कठिन परिस्थितियों में बल और साहस ही काम आते हैं।
साहसी लोगों की कहानियां केवल हमारे देश में ही नहीं, दुनिया के हर मुल्क में बड़े चाव के साथ कही और सुनी जाती है; क्योंकि उनके श्रोता उन कहानियों के नायक में स्वयं को समाहित करते हुए कथाधारा के साथ आगे बढ़ते हैं और कोई भी समस्या आने पर पूरे साहस के साथ उसका हल सोचते चलते हैं। कहानी का उद्देश्य पूरा होने तक यह प्रवृत्ति बिलकुल शांत नहीं होती।
1920 से 1930 के मध्य मूक सिनेमा के जमाने में बनी साहसिक फिल्मों में भेदी सवार, पंजाब मेल, इंतकाम, दगाबाज दुश्मन, खूनी खंजर, थीफ आफ देहली, शेरदिल, खूनी कौन, हिंद केसरी, मायानगरी, बुलबुल ए परिस्तान, गुल ए बकावली, चार दरवेश, थीफ आॅफ ईराक, फेयरी आॅफ सिंहलद्वीप, हूर ए अरब, हूर ए बगदाद, चिराग ए कोहिस्तान, माया महल, जादुई बंसरी, बंसरी वाला, शाही जंगल, शाही फरमान, बंगाल का जादूगर के नाम प्रमुख हैं।
इन फिल्मों में से किसी में नायक के साहसिक कारनामें हैं, किसी में नायक के साहस के साथ रहस्य रोमांच अधिक है तो किसी में नायक के साहस के साथ अपराध भी मिश्रित है। इन बिंदुओं को ध्यान में रखते हुए इस कोटि की सवाक् फिल्मों को तीन विशेष वर्गों में विभाजित किया जा सकता है – साहस प्रधान, रहस्य रोमांच प्रधान तथा अपराध प्रधान। आगे इन्हीं वर्गों के अंतर्गत हिंदी में बनी साहसिक फिल्मों का विवरण प्रस्तुत किया जाएगा। क्रमशः