नई सदी की प्रेमकथाएं:
जहां तक नई सदी की प्रेम प्रधान फिल्मों की बात है 2001 में बरसात, रहना है तेरे दिल में, चोरी चोरी चुपके चुपके, कभी खुशी कभी गम, गदर, तुम बिन, स्टाइल, 2002 में देवदास, साथिया, मैंने दिल तुझको दिया, कर्ज, 2003में तेरे नाम, मैं प्रेम की दिवानी हूं, कुछ ना कहो, कल हो न हो 2003 में मुन्ना भाई एम बी बी एस, रन, 2004 में हम तुम, वीर जारा, 2005 में क्यों कि, पहेली, आशिक बनाया आपने, बेवफा, 2006 में विवाह, हमको दिवाना कर गए, मेरे जीवन साथी, बस एक पल, 2007 में जब वी मेट, नमस्ते लंदन, ओम शांति ओम, सलाम ए इश्क, 2008 में रब ने बना दी जोड़ी, एक विवाह ऐसा भी, किस्मत कनेक्शन, 2009 में लव आजकल, अजब प्रेम की गजब कहानी, डेल्ही 6, तुम मिले,2010 में बैण्ड बाजा बारात और अनजाना अनजानी का बहुत बोलबाला रहा।
श्री ललित जोशी ने अपनी पुस्तक ‘हाउस फुल’ में लिखा है कि ‘ महानगरीय संस्कृति को पृष्ठभूमि में रखकर बनाई गई इन फिल्मों का हीरो कसरती बदन वाला ‘माचो’ युवक है तथा देह प्रदर्शन से न चूकने वाली ‘हेप’ युवतियां। विदेशी लोकेशन्स पर फिल्माए गए गानों की लय पर थिरकते हीरो हीरोइन की सबसे बड़ी कद्रदान उदारीकरण और भूमण्डलीकरण के दौर में पली बढी नई पीढ़ी है। उसकी भाषा वही है, जो उसके चहेते सितारों की है – यानि कि हिंदी और अंग्रेजी के फूहड़ सम्मिश्रण से बनी हिंगलिश। वह पुराने गीतों के शौकीन हैं। भले ही उन्हें ‘रीमिक्स’ करके प्रस्तुत किया जाए।’
2011 में तनु वेड्स मनु, रेडी, बाॅडी गाॅर्ड, मौसम, जिंदगी ना मिलेगी दोबारा, 2012 में जब तक है जान, एक था टाइगर, काॅकटेल, 2013 में आशिकी 2, राम लीला, रांझना, ये जवानी है दिवानी, लुटेरा, 2014 में टू स्टेट्स, हंसी तो फंसी, हंप्टी शर्मा की दुल्हनिया, 2015 में तमाशा, दिलवाले, तनु वेड्स मन रिटन्र्स, शानदार, बाजी राव मस्तानी, 2016 में डियर जिंदगी, रुस्तम, की एण्ड का, ए दिल है मुश्किल, 2017 में जब हैरी मेट सैजल, टाॅयलेट – एक प्रेम कथा, बद्रीनाथ की दुल्हनिया, मुबारकां, 2018 में पद्मावत, धड़क, लवयात्री, अंधाधुन, केदारनाथ, बत्ती गुल मीटर चालू, मनमर्जियां, नवाबजादे, बरेली की बरफी 2019 में राजी, मलाल, ड्रीमगर्ल, लुकाछिपी, दे दे प्यार दे, स्टूडेण्ट आॅफ द इयर 2 आदि प्रेम प्रधान फिल्में दर्शकों को देखने को मिलीं।
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आजकल कंेवल पुराने गीतों का ही नहीं, अब तो पुरानी फिल्मों का भी पुनर्सजन किया जा रहा है। एन. आनंदी ने 25 जनवरी 2003 के ‘अमर उजाला’ के रंगायन स्तंभ में लिखा कि ‘‘बात गलत नहीं है, नया नौ दिन और पुराना सौ दिन। नए दौर की फिल्में देखिए तो कितने दिन याद रहती हैं। वहीं पुरानी फिल्मों की बात करें , तो दीवाने दर्श्रकों पर जैसी मदहोशी छाने लगती है। बाॅलीवुड पर भी इन दिनों पुरानी फिल्मों का ऐसा ही कुछ नशा तारी है। भंसाली की ‘देवदास’ का एक मात्र मन्त्र था ‘भव्यता’। तो पुरानी क्लासिकों को फिल्माते वक्त भी इसी का ध्यान रखा जाएगा। पिछले दिनों तीन बड़ी फिल्मों ‘साहब बीवी और गुलाम’ 1962, ‘काबुली वाला’ 1961 और ‘मुगल ए आजम’ 1069 को रिमेक करने की बात सामने आई है।’’ क्रमशः