लोकगीत : जातीय लोकगाथाएं :
ये गाथाएं कुमाऊं के ख्यातिप्राप्त वीरों से संबंधित हैं,
जिनमें झकरूवा रौत, पचू दोराल, रतनुवा फड़त्याल,
अजुवा बफौल, माधो सिंह रिखोला आदि के नाम विशेष
रूप से उल्लेखनीय हैं। इनमें से कुछ के नाम इतिहास में
भी उपलब्ध होते हैं और कुछ के नाम केवल गाथाओं तक
ही सीमित हैं। इन गाथाओं में माधो सिंह रिखोला की गाथा
ज्यादा सुनी जाती है –
‘डूंगरा में पैका रूंनी माधोसिंग नामा
दूरौ का जोलिया छूं मी बतै दिया धामा
झपकन झौ छ मानी जावा मौ छ
ठुल तू हेरि लिए भुली, नान माधो मैं छूं
पिटि हाली ताम पितला ढालि हाली कांस
तरनि को हिटन तोडि़ छाले, उदिया को खांस
बचै दियौ लाज वीरौ आई रयूं पास
डोटी गढ़ जोलिया आयो, जाण छ नेपाल’
रोमांचक लोकगाथाएं
ये गाथाएं प्रेम और युद्ध की शाश्वत परंपरा से संबंधित हैं। इनमें रणु
रौत, सिसाउ लली, आदि कुंवरि, हरू हित, सुरजू कुंवर, हंस कुंवर,
दिगौली माना आदि की गाथाएं अधिक प्रसिद्ध हैं। रोमांचक प्रसंगों पर
आधारित होने के कारण ये ऐतिहासिक अथवा जातीय वीरगाथाओं से भिन्न
हैं, तथापि इनका गायन भड़ाै की ही भांति किया जाता है। दिगौली माना
के भड़ाै में रतनुवा युद्ध जीतकर पांजा रौतेली से विवाह करता है –
‘पैकान का च्याला छिया बड़ा बड़ा वीर
सुप जसा कान छिया डालो जसो पेट
निसौव जसा खाप छी रतग्यांली आंख
डबरयाली दीठ घगरयाली गिच छियो
बड़ाे जुद भीड़ करि बेर पांजा उठै ल्यायो
आंपणा संगा लै गो संगरामी कोट’