गज़ल : कोई बात नहीं :
तुम पे हालात के ़खतरे हैं कोई बात नहीं
जहाँ ने ज़ुल्म ही करे हैं कोई बात नहीं
जिनकी आँखो में चमकती थी हमेशा उल्फत
आज कुछ अश्क के ़कतरे हैं कोई बात नहीं
सबको मालूम है कि ज़िन्दगी की राहों में
दर्द के काँच से छितरे हैं कोई बात नहीं
आफतें आने पे आकाश के ़फरिश्ते भी
अर्श से ़फर्श पे उतरे हैं कोई बात नहीं
सभी की उम्र की किताब के नाज़ुक पन्ने
दीमक-ए-व़क्त ने कुतरे हैं कोई बात नहीं
अपनी तकली़फ बार-बार बयाँ मत करिए
हम भी इस दौर से गुजरे हैं कोई बात नहीं