गीत : तुम :
तुम्हारे रूप का दर्पण
बना आदर्श छबियों का
तुम्हारे प्यार का सागर
बना आश्चर्य कवियों का
तुम्हारे गीत सुनकर
कोयलों ने बोलना सीखा
तुम्हारी दृष्टि पाकर
मधुकरों ने डोलना सीखा
तुम्हारे केश छूकर ही
घुमड़ते हैं घने बादल
तुम्हारे नूपुरों को सुन
हुई हैं बिजलियां चंचल
तुम्हारी गुनगुनाहट से
नदी कलकल मचलती है
तुम्हारी धड़कनों से ही
हवा की गति बदलती है