लोकभाषा: भारतीय:

bhartiyलोकभाषा: भारतीय:

3. भारतीय शाखा

भारतीय शाखा आर्य भाषाओं के अतिरिक्त समग्र भारोपीय परिवार की सर्वश्रेष्ठ भाषा शाखा मानी जाती है। आर्यों के भारत में विस्तार तथा अन्य भाषा भाषियों से सम्पर्क के प्रभाववश वैदिक संस्कृत के रूपों में शनैः-शनैः शिथिलता आने लगी और सामान्य जीवन के दैनिक व्यवहार में प्रचलित भाषा लौकिक संस्कृत कही जाने लगी, जिसमें उच्चकोटि का साहित्य रचा गया। धीरे-धीरे लौकिक संस्कृत भी अपने समय के शिष्ट तथा शिक्षित समाज की भाषा के रूप में प्रतिष्ठित हो गई।

‘संस्कृत के साम्प्रदायिक एवं रूढ़िबद्ध हो जाने से जन बोलियों ने सर उठाना प्रारंभ किया। इस कार्य में महात्मा बुद्ध और महावीर जैन का अद्भुत योग रहा। महात्मा बुद्ध ने ब्राह्मणों एवं संस्कृत भाषा का विरोध किया और जन भाषा में ही अपने उपदेश दिए। यहीं से बोलियों को उठने का अच्छा अवसर मिला और वे शिष्ट वर्ग एवं साहित्य की भाषा बनीं। बुद्ध वचनों की भाषा पाली कहलाई और समूचा बौद्ध साहित्य पालि साहित्य के नाम से विख्यात हुआ।’

अशोक के शासन काल में पालि का व्यापक प्रयोग होने लगा था। आदेश और धार्मिक सन्देश खुदवाए। इस अवधि में संस्कृत भी सम्यक् रूप से प्रयुक्त होती रही। सामान्यजन अपने दैनिक जीवन में प्राकृतों का उपयोग करते थे। देश के विविध क्षेत्रों में प्रचलित विभिन्न प्राकृत, संस्कृत, पालि तथा जनप्रिय उपबोलियों से वे सभी विशेषताएँ ग्रहण करती रहीं, जो उन्हें सम्पन्न एवं समृद्ध बनाकर सूक्ष्म अभिव्यंजनाओं के लिए सशक्त बना सकें। यही कारण है कि लोकजीवन के अतिरिक्त शनैः-शनैः साहित्य, धर्म और दर्शन के क्षेत्रों में भी प्राकृतों का आधिपत्य हो गया। क्रमशः

Advertisement

Published by

Dr. Harishchandra Pathak

Retired Hindi Professor / Researcher / Author / Writer / Lyricist

Leave a Reply

Fill in your details below or click an icon to log in:

WordPress.com Logo

You are commenting using your WordPress.com account. Log Out /  Change )

Twitter picture

You are commenting using your Twitter account. Log Out /  Change )

Facebook photo

You are commenting using your Facebook account. Log Out /  Change )

Connecting to %s