गजल: ही रहे:
मुस्कराते भी रहे आह भी भरते ही रहे
तुम्हें भुलाते रहे याद भी करते ही रहे
तुम्हारे प्यार की ऊँचाइयों को छू-छू कर
हकीकतों की तलहटी में उतरते ही रहे
कभी गर्मी कभी बरसात कभी शीत लहर
लब-ए-अवाम की सुर्खी में उभरते ही रहे
किसने परवाह की मुरझाते हुए फूलों की
बहार में चमन के रंग निखरते ही रहे
किया पसन्द नहीं झूठ का कोई पहलू
फिर भी सच्चाइयों की शक्ल से डरते ही रहे
खुशी ने जब भी सँवारे तेरे गेसू-ए-खयाल
हवा-ए-गम से बार-बार बिखरते ही रहे