गजल: क्या कहें:
वक्त कितना कीमती है क्या कहें
चार दिन की जि़्ान्दगी है क्या कहें
मौत होती है सुना तो है मगर
आज तक देखी नहीं है क्या कहें
सब घटाएँ हो गई हैं मनचली
अब कोई मौसम नहीं है क्या कहें
नालियाँ नहरें बनीं नदियाँ बनीं
कौन सी दरियादिली है क्या कहें
बढ़ गया शक का नज़रिया चारसू
सब्र की कापफी कमी है क्या कहें
खो दिया ईमान पैसे के लिए
आजकल का आदमी है क्या कहें