लोकभाषा: द्वयर्थक शब्द 2
नंग : नग्न / नाखून
पड़ : सोना / पढ़ना
पुज : पूजा / पहुँच
बार : दिवस / बारह/ दफा
बीस : विष / बिसि (टवेंटी)
बोट : पेड़ / मत (वोट)
भाग : भाग्य / हिस्सा
भेट : उपहार / मिलन
भौ : शिशु / हुआ (भूतकालिक क्रिया)
मस्त : मदोन्मत / प्रचुर
माल : सम्पदा / तराई-भाबर (मैदानी भाग)
मौ : शहद / परिवार
राज : राज्य / मिस्त्राी / रहस्य
रुख : वृक्ष / रूखा
साँस : सन्ध्या / श्वास
हार : पंक्ति / पराजय/ माला
प्रत्येक जीवन्त बोली अपने ऐतिहासिक विकासक्रम में सम्पर्कशील
भाषाओं के तत्वों को ग्रहण ही नहीं करती, आत्मसात् भी करती
चलती है। सुरम्य प्रकृति और कठोर जीवन की खट्टी-मीठी अनुभूतियों
से अनुप्राणित कुमैयाँ शब्द सम्पदा की दृष्टि से एक समृद्ध बोली है।
इस बोली ने अनेक स्रोतों से आगत शब्दों को अपने स्वनिमों एवं
रूपिमों के अनुकूल इस प्रकार पचा लिया है, कि वे पराए नहीं
लगते। कहा भी गया है कि इस जगत में कोई ऐसी मानवीय
संकल्पना नहीं जो शब्द के बिना संभव हो। हमारी समस्त अनुभूतियाँ
एवं तज्जन्य ज्ञान केवल भाषिक माध्यमों से ही व्यक्त होता है।