लोकगीत : लोकगाथा :
लोकसाहित्य सदियों तक जन-गण-मन पर अपना प्रभाव बनाए रखता है। मन को एक
ओर यदि मुक्तक रचनाओं के भावानुभावों की अभिव्यंजना लुभाती है, तो दूसरी ओर प्रबंध
रचनाओं के चरित्रों की विशेषता भी आकर्षित करती है। यही कारण है कि मन की कोमल
भावनाओं से अनुरंजित लोकगीत भुलाए नहीं भूलते और चारित्रिक विशेषताओं से अनुप्राणित
लोकगाथाएं बरबस याद आती हैं।
इसमें कोई संदेह नहीं कि लोक साहित्य के पुराचरित्रों के माध्यम से सम-सामयिक
भावबोध की जटिलताओं का विश्लेषण करना आसान नहीं होता, तथापि प्रत्येक युग
अपने ऐतिहासिक अनुभवों को सदैव नई दृष्टि से व्याख्यायित करना चाहता है।
शायद इसीलिए हर युग का कलाकार सृजनात्मक स्तर पर अतीत एवं वर्तमान के
परोक्ष तथा प्रत्यक्ष समाजों को समानांतर रखकर शाश्वत जीवन मूल्यों पर सही का
निशान लगाना चाहता है।
कुमाऊँ का लोक साहित्य अत्यंत समृद्ध है। इसकी लोकगाथाओं में गद्य-पद्य मिश्रित चंपू
शैली के दर्शन होते हैं। गाथाओं के विस्तृत वर्णन में अनेक स्थल ऐसे भी आते हैं, जहां
पद्य का स्थान गद्य ले लेता है, पर गायक उस अंश को भी लय के साथ गाकर प्रस्तुत
करता है। विषयवस्तु के आधार पर कुमाऊँ में प्रचलित लोकगाथाओं को निम्नवत्
विभाजित किया जा सकता है ; जैसे – परंपरागत, पौराणिक, धार्मिक और वीरतापरक।