सिनेमा: अवाक् सामाजिक:
समाज सुधार नवजागरण का एक भविष्योन्मुखी पक्ष था, अतः कुछ ऐसी
फिल्मों का भी निर्माण हुआ, जो सुधार केंद्रित थीं। इन्हें ‘टाॅपिकल्स’
कहा जाता था; जैसे 1921 में धीरेंद्र गांगुली ने ‘इंग्लैंड रिटर्न’नामक
फिल्म बनाई, जिसमें यूरोपीय आधुनिकता को अस्वीकार करते हुए उन
भारतीयों पर व्यंग्य कसा गया है, जो पश्चिम की चकाचैंध में भारतीयता
को भुला रहे थे।
इसके अतिरिक्त निर्मित अन्य अवाक् फिल्मों में पिता की कमाई – 1922,
कीमती आंसू, बम्बई की सेठानी, ननद भौजाई, सहधर्मिणी, एजूकेटेड वाइफ
– 1923; समाज की भूल, एक अबला – 1924; आशा , बीसवीं सदी –
1925; टाइपिस्ट गर्ल, टेलीफोन गर्ल – 1926; गुण सुंदरी, बाल हत्या –
1927; अन्नपूर्णा, अपराधी अबला, औरत का दिल, औरत का प्यार – 1928;
विश्व मोहिनी, भिखारन, औरतों से सावधान, कुलदीपक, पति पत्नी, मेरी मांॅ –
1929; औरत का बदला, एक आदर्श औरत, सिनेमा गर्ल, सुहागरात – 1930
को सामाजिक फिल्मों की कोटि में रखा जा सकता है।
1921 से 1930 के मध्य निर्मित प्रेम विषयक फिल्मों में लोकगाथाओं पर आधारित
हीर रांझा, लैला मजनू, सस्सीपुन्नू, शीरीफरहाद, सोहनी महिवाल के अतिरिक्त राधा
रानी, इंदिरा, दुलारी, दिवानी दिलवर, प्रेम परीक्षा, प्रेम पुजारी, दिलरुबा, चितचोर,
पागल प्रेमी, चांद का टुकड़ा विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। जिस प्रकार प्रेम विषयक
फिल्में दो प्रकार की हैं – लोक कथाश्रित एवं कल्पनाश्रित; उसी प्रकार सामाजिक
फिल्मों के भी दो भेद किए जा सकते हैं – समाज प्रधान एवं परिवार प्रधान। इस
प्रकार 1930 के बाद निर्मित सवाक् सामाजिक फिल्मों को विधिवत् वर्गीकृत किया जा
सकता है। क्रमशः