गजल: बना देती है:
मौत लम्हों को ख़तरनाक बना देती है
भूख इंसान को चालाक बना देती है
दामन-ए-वक़्त में ग़म भी हैं और खुशियाँ भी
जि़्ान्दगी इनको इत्तफाक बना देती है
गर भड़क उट्ठे तो नफरत की एक चिनगारी
प्यार के जंगलों को ख़ाक बना देती है
दिल के आलम में जरा सी हवा-ए-रुसवाई
मौसम-ए-इश्व़्ाफ को नापाक बना देती है
हमको मालूम है कि सच की जरा सी हिम्मत
झूठ के जोश को बेबाक बना देती है
प्यार की राह में जब कोई भटक जाता है
जि़्ान्दगी उसको शर्मनाक बना देती है