विशेष: राष्ट्रीय एकता:
भारत एक विशाल राष्ट्र है, जिसमें विभिन्न धर्मों और जातियों के लोग एक साथ रहते हैं। उनके खान-पान, आचार-व्यवहार तथा वेश-भूषा में पर्याप्त अंतर दिखाई देता है, जो सिर्फ बाहरी है। वास्तविकता यह है कि हमारे देश में दिखाई देने वाली अनेकताओं के अंदर एकता की एम शाश्वत धारा चिरकाल सक प्रवहमान है, जो तथाकथित विभिन्नताओं को अभिन्न बनाए हुए है। देश के चार भागों में विद्यमान चार धाम; प्राचीन वाड्.मय के महान ग्रंथ; राम, कृष्ण, बुद्ध और महावीर की सम्यक् मान्यता और गंगा, यमुना, कावेरी या ब्रह्मपुत्र नदियों की समान पवित्रता आदि ऐसी कई बातें हैं, जो संपूर्ण राष्ट्र को एक सूत्र में बांधती हैं।
शास्त्रीय दृष्टि से किसी राष्ट्र के तीन अनिवार्य तत्व माने जाते हैं – जन, भूमि और संस्कृति। इन तीनों की एकता की भावना से ही राष्ट्रीय एकता की भावना समृद्ध होती है, जो राष्ट्रीय पर्वाें, सामाजिक त्योहारों व पारिवारिक संस्कारों में एक ही रूप में परिलक्षित होती है। एकता का यही रूप प्रत्येक राष्ट्रवासी के मन में इस धारणा का पोषण करता है कि भले ही हम भिन्न भिन्न प्रकार की वेशभूषा धारण करते हों, भले ही हमारे मजहब अलग अलग हों, लेकिन हम सब एक ही भारतमाता की संतान हैं और उसकी रक्षा के लिए अपना तन-मन-धन न्योछावर कर सकते हैं। इस भावना को मुखरित करने के लिए परस्पर जुड़ने का सबल माध्यम है भाषा।
प्राचीन काल में अश्वमेध यज्ञ और दिग्विजय अभियान, सम्राट और साम्राज्य जैसे शब्द इस तथ्य के प्रमाण हैं कि यह विशाल राष्ट्र भारतीय राष्ट्रीय एकता के लिए काफी पहले से प्रयासशील रहा है। आर्याें और अनार्यों की एकता से लेकर हिंदुओं और मुस्लिमों की एकता तक के प्रयासों में भी राष्ट्रीय एकता की भावना ही सक्रिय है। हिंदुओं की होली में मुसलमानों का शरीक होना और मुसलमानों की हिंदुओं का सम्मिलित होना भी इसी दिशा में उठाए जाने वाले उदार कदम रहे हैं। कवीन्द्र रवीन्द्र नाथ टैगोर के अनुसार -‘‘भारत की चिरकाल से यही चेष्टा देखी जाती है कि वह अनेकता में एकता स्थापित करना चाहता है, वह बहुत के बीच किसी एक को उपलब्ध करना चाहता है।’’ क्रमशः