सिनेमा: अन्य राजनीतिक:
1991 में शेर ए हिंदुस्तान, प्रहार; 1992 में रोजा, हे राम, काला बाजार;
1993 में इज्जत, क्रांतिवीर, जख्म; 1994 में खुद्दार; 1995 में बाम्बे,
इंकलाब, करन अर्जुन, आर्मी, कारतूस; 1996 में मुद्दा, अग्निपथ, विनाशक,
हथियार, औजार, ट्रेन टू पाकिस्तान, माचिस, गुलाम ए मुस्तफा; 1997 में
अंगरक्षक; 1998 में लोफर, चाइना गेट, मिलिट्री राज, सोल्जर, दुश्मन,
पुकार, जंगल, एक ही रास्ता; 1999 में सरफरोश, अंश, हू तू तू, कोहराम,
हिंदुस्तान की कसम, शहीद ए मोहब्बत; 2000 में रिफ्यूजी, तिरंगा, वार एण्ड
लव, सत्या, हम, कहर, जीत, फर्ज, हम हैं बेमिसाल नामक फिल्में बनीं।
नई सदी में 2001 में वास्तव, जंग और अमन, अक्स, मिशन कश्मीर, गदर;
2002 में नायक, मां तुझे सलाम, शूल, दिलजले, बाॅम्बे पोलिस, फिजा, लहू
के दो रंग, द लीजेण्ड आॅफ भगत सिंह, 16 दिसंबर; 2003 में सत्ता,
अग्निपंख, एल. ओ. सी., कलकत्ता मेल, पिंजर; 2004 में युवा, स्वदेश,
सरहद पार, अब तुम्हारे हवाले वतन साथ्यिो, धूप, जमीन, सुभाष चंद्र बोस,
लक्ष्य, हासिल, क्रांति, खाकी तथा दीवार नामक राजनीतिक फिल्मों का बोलबाला
रहा।
चंद्रकांत शिंदे के शब्दों में ‘‘कच्चे धागे – जैसी सफल फिल्म देने वाले युवा निर्देशक
मिलन लथूरिया ने ‘दीवार’ जैसी एक अलग विषय की फिल्म बनाने का साहस किया,
जिसे बाॅक्स आॅफिस सफलता भी हासिल हुई। पाकिस्तान की जेल में कई सालों से
बंद भारतीय फौजियों की इस कहानी में अमिताभ बच्चन ने अपनी अदाकारी से चार
चांद लगा दिए थे। संजय दत्त ने भी इसमें एक अलग तरह का किरदार निभाकर
अपना वजूद जता दिया था। अमिताभ के बेटे के रूप में अक्षय खन्ना ने भी अच्छा
काम करके दिखाया था।’’
इसके बाद 2010 में राजनीति, पीपली लाइव; 2012 में एम. एल. ए., 2013 में
सत्याग्रह, बंदूक, मद्रास कैफे 2014 में यंगिस्तान, देख तमाशा देख, कटियाबाज,
जेड प्लस, गरम हवा; 2015 में जय जवान जय किसान, 2016 में जय गंगाजल,
2019 में एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर ने भावपक्ष एवं कलापक्ष की उंचाइयों को सम्यक्
रूप से स्पर्श किया है। क्रमशः