गजल: चाँद उगते रहेे:
चाँद उगते रहे सूर्य ढलते रहे
और तारे अँधेरों में पलते रहे
झिलमिलाती हुयी वक्त की रेत पर
उम्र के ऊँट करवट बदलते रहे
आँसुओं के जमाख़ोर बाज़्ाार में
भाव नभ चूमने को मचलते रहे
जो भी मिलता रहा पेट में डालकर
अपनी आँतों के दानव को छलते रहे
तन में घर कर गईं जब से बीमारियाँ
मन में रिश्तों के मतलब पिघलते रहे
जि़्ान्दगी की कसम मौत के रहम से
जल्द मरने के आसार टलते रहे