लोकगीत : कृषि विषयक कथागीत :
खेतों में गोड़ाई करते समय और धान की रोपाई के समय गाए
जाने वाले गीत ‘गोड़ाैल’ अथवा ‘हुड़किया बौल’ कहे जाते हैं।
प्रमुख गायक अपने वाद्य ‘हुड़का’ पर थाप दे देकर मंद लय में
गीत की पंक्ति गाता है और रोपाई या गोड़ाई के कार्य में लगी हुई
महिलाओं की पंक्ति उसे दोहराती है। इन गीतों के स्वर श्रम को
सहज बना देते हैं।
इस प्रकार के ‘जसी बौराण’ नामक एक कथागीत में बलिप्रथा के
विषय में जानकारी मिलती है। सबके खेतों में सिंचाई होते देख एक
महिला ने अपने पुत्र को खेतों की सिंचाई का मुहूर्त निकलवाने के
लिए ब्राह्मण के पास भेजा। ब्राह्मण ने रेखाएं खींचते-मिटाते हुए यह
विचार किया कि औरों के खेतों में तो बकरे की बलि पर्याप्त है,
पर तुम्हारे खेतों के लिए मानव की बलि देनी होगी।
ओ सबूं की सेरो मांझा बकरिया बइ छ
तुमरि सेरी मांझा मनखिया बइ छ
जो निकांसी बौराण, उनोर बइ छ
रूमनै-झुमनै जसू घरा नसी ऐ गोछ
च्याला त्विथैं कि कुंणौंछी बामण ?
ओ बुढि़या माएडि़ पुछन पैगिछ
ओ निकांसि बौराण, उनोर रे बइ
सबूं की सेरी रे बाकरै कि बइ
हमरी रे सेरी मनखा कि बइ