सिनेमा: साठ से नब्बे तक:
1961 में धर्मपुत्र, सन आफ इंडिया, गंगा जमना; 1963 में आदमी और इंसान,
शहीद भगत सिेह, चंद्रशेखर आजाद; 1964 में लीडर, सुभाष चंद्र बोस, शहीद,
शहर और सपना; 1965 में हकीकत; 1966 में मेरी आवाज सुनो, मेरे लाल,
संबंध; 1967 में उपकार, अमन; 1968 में बंबई रात की बाहों में; 1969 में
सात हिंदुस्तानी, सत्यकाम; 1970 में प्रेम पुजारी, हमारा अधिकार, समाज को
बदल डालो नामक राजनीतिक फिल्में जनता द्वारा पसंद की गई।
धीरे धीरे जब छात्रों ने राजनीति में सक्रिय भाग लेना प्रारंभ किया, तब विपक्षी दल
के नेताओं ने उन्हें अपनी स्वार्थ सिद्धि का माध्यम बनाया; जिसके परिणाम स्वरूप
जन आंदोलन, अनशन अथवा तोड़ फोड़ की घटनाओं द्वारा सत्ता के विरोध का मार्ग
प्रशस्त हुआ। ‘मेरे अपने’ नामक फिल्म में यही सब दिखाया गया है।
मेरे अपने के अलावा 1971 में ललकार, जय बांग्लादेश; 1972 में नया जमाना,
बावर्ची; 1973 में गर्म हवा, हिंदुस्तान की कसम, नमक हराम; 1974 में सगीना,
आविष्कार; 1975 में किस्सा कुर्सी का, आंधी, आक्रमण; 1977 में त्रिशूल, स्वामी,
आनंद आश्रम; 1978 में गम, सुनयना, खुद्दार; 1979 में सुभाष चंद्र, अंधा कानून,
काला पत्थर; 1980 में घर, लोक परलोक; 1981 में सिलसिला, सद्गति, कालिया,
अंगूर; 1982 में गांधी, 1983 में विजेता, कुली; 1984 में पार्टी, दहलीज, दामुल;
1985 में अंकुश, मिर्च मसाला; 1986 में अर्जुन, कर्मा; 1987 में शहंशाह; 1988
में बाज बहादुर, 1089 में मैं आजाद हूं 1990 में लाल सलाम नामक फिल्में काफी
लोकप्रिय रहीं।