सिनेमा: स्वातंत्र्योत्तर:
आजादी मिलने के बाद 1948 में बनी आजादी की राह पर, आजाद हिंदुस्तान, देशसेवा,
जयहिंद, शहीद, हम भी इंसान हैं, गुलामी; 1949 में बनी अपना देश, मातृभूमि, लाहौर,
गरीबी, परिवर्तन, उद्धार, जीत, अन्याय; 1950 में बनी गेटवे आॅफ इंडिया, अफसर,
मशाल, हिंदुस्तान हमारा है, पहला आदमी, कश्मीर हमारा है तथा समाधि नामक फिल्मों
को राजनीतिक वर्ग के अंतर्गत रखा जा सकता है। समाधि के विषय में श्री महेंद्र मित्तल जी
ने अपनी पुस्तक ‘भारतीय चलचित्र’ में लिखा है कि यह ‘‘नेताजी की आजाद हिंद फौज
के कार्यों से संबंधित एक काल्पनिक कथा पर आधारित एक प्रणय कथा चित्र मात्र था, किंतु
इसका पटकथा शिल्प सुंदर था। देशभक्ति की भावना का चित्रण इसमें सुंदर था।’’
स्वतंत्र भारत में निर्मित राजनीतिक फिल्मों में कश्मीर, आंदोलन, हम लोग, आवारा, दीदार –
1951; आनंदमठ, अन्नदाता, राही – 1952; गोलकुंडा का कैदी, नया रास्ता – 1953; वतन,
मुन्ना, बूट पाॅलिश, जागृति – 1954; हमारा वतन, इंकलाब, दो आंखें बारह हाथ – 1956;
अब दिल्ली दूर नहीं, परदेसी, मदर इंडिया, दो रोटी, नया दौर, मुसाफिर, हम पंछी एक
डाल के – 1957; नया पैसा, साधना, फरिश्ता, कल क्या होगा, तलाक, फिर सुबह होगी –
1958; हमारा घर, इंसान जाग उठा, कल हमारा है, हीरा मोती – 1959; शान ए हिंद,
रिक्शा वाला, एक के बाद एक, जिस देश में गंगा बहती है – 1960 प्रमुख मानी जाती हैं।
इन फिल्मों में से कई में समाजवाद के तत्व भी परिलक्षित होते हैं।
श्री बी. एन. शर्मा ने अपनी पुस्तक ‘सवाक् भारतीय हिंदी फिल्म्स’ में लिखा है कि ‘‘ अब
दिल्ली दूर नहीं – में भी समाज में व्याप्त धोखाधड़ी, झूठे इल्जाम का चित्रण है, परंतु साथ ही
यह भी बताया गया है कि जब बेगुनाह की कोई नहीं सुनता तो उसके लिए दिल्ली के दरवाजे
खुले रहते हैं, बस पहुंचने वाले की देर है, न्याय अवश्य मिलता है। फिल्म में बताया गया है कि
तत्कालीन प्रधानमंत्री बच्चों के चाचा नेहरू मासूम बच्चों और उनके माता पिता की पुकार को अवश्य
सुनते थे और उन्हें न्याय मिलता था। यही भारतीय राजनीति का गौरव कहा गया है।’’ क्रमशः