गजल: टैम:
टैमो पहिय चंल्छ बिन रुक्या
दिन और रात गुरू
यो कभ्भैं नै रुक्न कस लगै
हों हालात गुरू
हर पल अग्घा बंढ्छ हमेसा
पच्छा कै नै देख्न
मगर देखै दिंछ एक दिन
सब्बौ खन औकात गुरू
कभ्भैं औंछि खुसी जीवन मैं
कभ्भैं गम ऐ जां
उ के लै नै कर्न हुनान
आप्नै जजबात गुरू
पल पल हुंछ कीमती ‘टैम हुंछ धन’
बरबाद न कर
हमूं दि रै भगवानै ले यो
असली सौगात गुरू