लोकगाथा: लक्ष्य – बेध 7
हिंदी रूपांतर
राजकुमारों की भीड़ जुड़ी थी।
दरी-दीवानों की एक (अलग) कचहरी थी।
श्रेष्ठ ब्राह्मणों की एक (अलग) कचहरी थी।
योगियों, भक्तों की एक (अलग) कचहरी थी।
संन्यासी बैरागियों की एक (अलग) कचहरी थी।
दासी उदासियों की एक (अलग) कचहरी थी।
राजा द्रुपद ने अब क्या किया?
रानियों के अन्तःपुर में आदेश दिया-
कन्या द्रोपदी को श्रृंगार करवाने का आदेश दिया।
राजाओं की दासियाँ वस्त्र पहिनाने लगीं।
तेल-फुलेल का छिड़काव करने लगीं।
चोबा चन्दन, हीरामणि मालायें पहिनाने लगीं।
पटूमर धोती पहिनाने लगीं।
लली-द्रोपदी, माँ के कंठ से चिपक गई।
मेरे पिता ने लक्ष्यबेध (की शर्त) बाँधी। क्रमशः