लोकगीत : संस्कार विषयक कथागीत :
संस्कारों के अंतर्गत ‘ज्यूंति पूजा’ के अवसर पर ‘नंदू बालो’ नामक एक कथागीत
गाया जाता है। इस कथागीत में नंदू नामक बालक अपनी माता से खाना बनाने का
आग्रह करता है, क्योंकि उसे पूजा के फूल लेने के लिए जमुना पार जाना है।
मां पूछती है कि तुम वहां कैसे जाओगे ? तुम्हें रास्ता कौन दिखाएगा ? नदी कौन पार
कराएगा ? बालक उत्तर देता है कि दो आंखें रास्ता दिखाएंगी, दो जांघें नदी पार कराएंगी।
फिर वह बालक एक डलिया बिनने वाले के पास जाकर एक डलिया बिनने को कहता
है। वहां से एक लोहार के पास जाकर एक छोटा सा हथियार गढ़ने को कहता है। फिर
रास्ते की कठिनाइयों को पार करता हुआ वह नागिन के पास पहुंचता है और मासी का
फूल तोड़ने के लिए कहता हैै।
नागिन उससे पूछती है कि – तू दुखी है या जुए में हारा है ? बालक को टालने के लिए
नागिन कहती है कि – तू पइयां के फूल ले जा। रूखी-सूखी पत्ती ले जा। बालक कहता है
कि – पइयां के फूलों या झड़े पत्तों से पूजा नहीं होती। मैं तो नाग के सिर पर पैर रखकर
वृक्ष से फूल तोड़कर ले जाउंगा, जो मेरे मामा कंस राजा के यहां ज्यूंतिपूजा के लिए चाहिए।
यह कहकर वह बालक मासी के फूल से अपनी डलिया भरकर लौटता है।
झडि़या पडि़या को पूजा नि हूनी
पैंया पाति की पूजा नि हुनी
मैं लि जूंलो रूख का टिपिया रे
नाग की माथी में खूटा धरूंलो
ली मैं जूंलो रूख का टिपिया रे
भला भला कुरिड़ भरौंलो
मेरे मामा का कंस राजा का ज्यूंति पूजा
वाँ रे चैनीं मासी का फूल ए।