सिनेमा: साहित्यकार:
हिंदी कथासाहित्यकारों में प्रेमचंद की रचनाओं पर सबसे ज्यादा फिल्में बनीं, क्योंकि
अपनी रचनाओं में उन्होंने केवल देश की आजादी की आकांक्षा ही अभिव्यक्त नहीं की,
बल्कि जातिगत मिथ्याभिमान, सामंतवादी शोषण, सांप्रदायिक मदांधता, मानसिक संकीर्णता,
बाल विवाह, विधवा विवाह, दहेज, निरक्षरता, अस्पृश्यता आदि अनेक ज्वलंत समस्याओं
पर भी लेखनी चलाई। उनकी रचनाओं में उनका युग अपने यथार्थ रूप में प्रतिबिंबित हुआ
है। यह यथार्थ अपनी आदर्शोन्मुखता के कारण अनुकरणीयप्रतीत हुआ और इसी प्रतीति ने
हिंदी के सुरुचिसंपन्न फिल्मकारों को आकर्षित किया।
कहानियों पर बनी फिल्में –
1. मिल 1934 अजंता सिनेटोन
2. नवजीवन 1934 एए एए
3. स्वामी 1941 सिरको प्रोडक्षंस
4. हीरा मोती 1959 श्रीकृष्ण चोपड़ा
5. शतरंज के खिलाड़ी 1977 सत्यजित रे
6. सद्गति 1981 एए
उपन्यासों पर बनी फिल्में –
1. सेवा सदन 1934 महालक्ष्मी सिनेटोन
2. रंगभूमि 1946 भावनानी प्रोडक्षंस
3. गोदान 1963 त्रिलोक जेटली फिल्म्स
4. गबन 1966 श्री सोरल और सोनथालिया
विगत शताब्दी के मध्य में हिन्दी के जिन साहित्यकारों के कथासाहित्य पर फिल्में बनीं,
उनमें से भगवती चरण वर्मा ;चित्रलेखाद्धए सुदर्शन ;धूप.छांवद्धए सेठ गोविंद दास (धुआंधार),
चंद्रधर शर्मा गुलेरी (उसने कहा था), आचार्य चतुर सेन शास्त्री (धर्मपुत्र, आम्रपालीद्ध)
फणीश्वर नाथ रेणु (तीसरी कसम), धर्मवीर भारती (सूरज का सातवां घोड़ा) के नाम विशेष
रूप से उल्लेखनीय हैं। क्रमश: