गजल: बेतुके प्रश्न:
दर्द जब राग में ढल जाते हैं
बेतुके प्रश्न मचल जाते हैं
कल्पना की उड़ान भरने को
बुद्धि के पंख निकल आते हैं
बर्फ के ढेर दिन बिगड़ने पर
नर्म किरनों से पिघल जाते हैं
शेर से लोग गधों के आगे
खून का घँूट निगल जाते हैं
आम चीजों के दाम बढ़-बढ़ कर
जेब में मूँग सी दल जाते हैं
सिर्फ कुर्सी की मेहरबानी से
रंग और ढंग बदल जाते हैं