लोकगीत : कथागीत :
हमारी सांस्कृतिक परंपराएं भी एक आध सदी के प्रयासों का नहीं, वरन् हजारों
वर्षों के संघर्ष और चिन्तन का प्रतिफल हैं; जिनका प्रत्येक पहलू अनन्त काल से
चल रहे देवासुर संग्राम अर्थात् अच्छाई और बुराई के युद्ध से सीखा हुआ सबक है।
गेय होने के कारण कुमाउनी लोकगीतों के अंतर्गत कथागीतों एवं लोकगाथाओं की
चर्चा करना अस्वाभाविक नहीं ।
कथागीतों का सौंदर्य गायन की अपेक्षा वर्णन की शैली में अधिक निखरता है। इनकी
भावधारा बड़ी खूबसूरती के साथ संवादों के माध्यम से आगे बढ़ती है। संवाद अन्य
लोकगीतों में भी होते हैं, पर वहां किसी परिस्थिति या मनस्थिति का उद्घाटन होता है,
जबकि कथागीत में घटना प्रधान होती है। इसके अतिरिक्त कथागीतों में मुख्य घटना के
साथ अवांतर प्रसंग नहीं होते, जिसके कारण आकार में ये अन्य लोकगीतों से अलग प्रतीत
नहीं होते और प्रकार में लोकगाथाओं से भिन्न माने जाते हैं।
यह भिन्नता केवल आकार में ही नहीं, वरन् कथ्य में भी परिलक्षित होती है। इनमें किसी
पौराणिक, ऐतिहासिक या सामाजिक घटना का वर्णन होता है। विषयवस्तु के आधार पर
कुमाउनी कथागीतों को वर्गीकृत भी किया गया है; जैसे संस्कार विषयक, ॠतु विषयक,
कृषि विषयक, शौर्य विषयक आदि। ‘सोगुन’ जोहार के शकुनाक्षर हैं।”