सिनेमा: राजनीतिक:
1957 की जनक्रान्ति के उपरांत भारत की राजनीतिक चेतना में एक परिवर्तन की लहर दौड़ने लगी थी, क्योंकि अंग्रेजों की सरकार पूरे देश में अपनी धाक जमाने के लिए अत्याचार और दमन पर उतारू थी। उनके इस अन्यायपूर्ण रवैये के विरोध में अपने जीवन को अलिदान करने वाले वीरों की कठोर परिस्थितियों ने जब फिल्मकारों का ध्यान आकर्षित किया, तब उन्होंने तत्कालीन राजनीतिक वातावरण को भी अपनी फिल्मों का विषय बनाया। सरकारी दबाव के कारण इन फिल्मों में यद्यपि मूलकथा के साथ कल्पना का सम्मिश्रण भी किया गया, तथापि परोक्ष रूप से ही सही, वीरों द्वारा किए जा रहे संघर्ष के माध्यम से विदेशी साम्राज्य के प्रति स्वदेशी आक्रोश का प्रदर्शन अवश्य हुआ।
अवाक् युग में 1921 से 1930 के दशक में निर्मित उच्च कोटि की राजनीतिक फिल्मों में भारत का भविष्य, भारत प्रेम, भारत माता, विद्रोही, बर्थ राइट उर्फ जन्म सिद्ध अधिकार, देशबन्धु, देशदीपक, नवभारत, स्वदेश की सेवा, नूर ए वतन, वतन परस्त, यंग इंडिया का नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय है। इन फिल्मों में राष्ट्रीयता की वह भावना परिलक्षित होती है, जिसमें देशप्रेम के तत्व निहित होते हैं। ये तत्व देश के विविध मतावलम्बी निवासियों को एकता के सूत्र में बांधने का प्रयास करते हैं। सच्ची राष्ट्रीयता वही है, जिसमें व्यक्ति देश हित व राष्ट्र हित के लिए सर्वस्व त्यागने के लिए तत्पर रहता है।
सवाक् युग में 1931 से 1940 के दशक में निर्मित राजनीतिक फिल्मों में सवकारी पाश, दौलत का नशा – 1931, हिंदुस्तान, जलती निशानी – 1932, वतन परस्त, गरीब की दुनिया, संवासदन – 1934 आजादी, स्वराज की सीढ़ी, जोश ए वतन, अमृत मंथन, मंजिल, आजादी, नया जमाना – 1935, अमर शहीद, राजनीति, जन्मभूमि, फिदा ए वतन, अछूत कन्या – 1936, भारत के जवान, स्वराज के सिपाही, वहां, धरती माता, बेरोजगार, मिल ओनर, अमर ज्योति, नौजवान, जागीरदार, प्रेसीडेंट, मुक्ति, धनवान – 1937, वतन, निराला हिंदुस्तान, जवाब – 1938, मेरा वतन, वतन के लिए, जमीदार, अमृ्त, ईमानदार, त्यागभूमि – 1939, औरत, आज का हिंदुस्तान, हमारा देश, पड़ोसी, हिंदुस्तान हमारा, आजादी ए वतन, देशभक्त, जय स्वदेश – 1940 प्रमुख हैं। क्रमशः