गीत : वृक्षदेव :
हे वृक्षदेव! जागो जग के
कण कण से आंखें चार करो
कृत्रिमता से दूषित होती
इस धरती पर उपकार करो
हे बीजब्रह्म ! अंगड़ाई लेकर
मूल प्रकृति को अपनाओ
माया के बंधन में बंधकर
सारी दुनिया में छा जाओ
शाखों वाली शीतलता से
छाया वाली निर्मलता से
दानव आकार बढाते हुए
प्रदूषण का संहार करो
पत्तों जैसी चंचलता से
फूलों जैसी कोमलता से
उद्योगों से धुंधलाते हुए
पवन का पुनरूद्धार करो