लोकगीत : विशिष्ट गीत :
डॉ0 त्रिलोचन पांडे ने अपनी पुस्तक ‘कुमाउनी भाषा और उसका
साहित्य’ में लिखा है कि स्फुट गीतों के ”विशिष्ट वर्ग में ‘घन्याली’,
‘गणतौ’, ‘ढोसुक’, ‘सोगुन’ आदि के उदाहरण तो मिल जाते हैं,
किंतु ‘कड़खा’, ‘फांक’, ‘पौंड’ और ‘ड्योड़’ आदि के उदाहरण
नहीं मिलते।
‘घन्याली’ को ‘घट्याली’ अथवा ‘घटेली’ भी कहते हैं। घण्टी बजते
रहने के कारण संभवत: गीत का यह नाम पड़ा है। अथवा प्रत्येक शब्द
के अंत में ‘घन्याली’ शब्द की पुनरूक्ति होने के कारण यह नाम पड़ा
होगा।’गणतौ’ वस्तुत: ‘गणतू’ (गणना करने वाला) से बना है, जो
ग्रामीण क्षेत्रों में ज्योतिषी का नाम है। इसमें अभिमंत्रित वस्तु द्वारा शुभाशुभ
का विचार कराया जाता है। यह दानपुर पट्टी की ओर अधिक प्रचलित है।
‘ढोसुक’ मुख्यत: मंगलामुुखियों द्वारा दीपावली के अवसर पर गाए
जाते हैं और चौखुटिया, मासी क्षेत्रों की ओर अधिक प्रचलित हैं।
इनमें ‘डफ’ बाजा बजता है।