सिनेमा: नई शताब्दी:
नई शताब्दी में एक ओर आमिर खान की लगान तथा मंगल पाण्डे में अंग्रेज षासकों के तौर-तरीकों पर नए अंदाज से रोषनी डाली गई और दूसरी ओर षाहरुख खान की अषोक तथा अकबर खान की ताजमहल में नव्यता एवं भव्यता के साथ मगध व मुगल सम्राटों का पुनरावलोकन हुआ। गांधी को लेकर ष्याम बेनेगल ने द मेकिंग आफ महात्मा नामक फिल्म बनाई। राप्ट्र नायकों को लेकर फिल्म बनाने वाले राजकुमार संतोपी की द लीजेण्ड आफ भगत सिंह, गुड्डू धनोवा की 23 मार्च 1931 शहीद, केतन मेहता की सरदार बल्लभ भाई पटेल, श्याम बेनेगल की बोस-द फाॅरगाॅटन हीरो ने फिर से इतिहास पर नजर डालने का प्रयास किया।
इसके अलावा आषुतोष गोवारिकर की जोधा अकबर – 2008 ओर उसके बाद
2010 में खेलें हम जी जान से, 2011 में द डर्टी पिक्चर, 2012 में पान सिंह तोमर, 2013 में भाग मिल्ख भाग, श्रंगार; 2014 में संभाजी 1689, क्या दिल्ली क्या लाहौर; 2015 में बाजी राव मस्तानी, 2016 में मोहन्जो दारो, सिद्धार्थ गौतम, चापेकर ब्रदर्स, एयरलिफ्ट; 2017 में बेगम जान, इंदु सरकार; 2018 में राजी, पद्मावत, पलटन; 2019 में मणिकर्णिका और केसरी नामक फिल्मों के नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं।
सही समीक्षा के अभाव में व्यवसायी फिल्मकार यह भूल जाते हैं कि उनकी फिल्मों में ऐतिहासिक प्रसंगों के साथ समसामयिक संस्कृति भी समन्वित है और इन फिल्मों का भारत के अलावा अन्य देषों में भी प्रदर्शन होता है। अंतर्राप्ट्रीय स्वीकृति के लिए विदेशी दर्षकों की बौद्धिक अवस्था का भी ध्यान रखना पड़ता है। यही कारण है कि स्वदेषी अथवा विदेषी पुरस्कार पाने वाली फिल्मों में हिन्दी फिल्मों की अपेक्षा क्षेत्रीय भाषाओं की फिल्में अधिक होती हैं, क्योंकि वे अपनी जमीन से जुड़ी होती हैं, अपने परिवेष से सजी होती हैं। सही पहचान के लिए कोई भी सृजन देश और काल के सहज वातावरण में होना चाहिए । क्रमशः