लोकगाथा: लक्ष्य – बेध 4
हिंदी रूपांतर
सुनहली मछली वेदी पर स्थापित की थी।
सोलह योजन का स्फटिक-स्तम्भ रोपा गया था।
स्तम्भ के नीचे स्थिर की थी तेल की चासनीं।
स्तम्भ की चोटी पर था धर्म-चक्र।
सुनहली मछली की हीरामणि-जड़ित आँखें थीं।
राजा द्रुपद ने प्रण किया था-
जो राजा मछली की आँखें बेध देगा।
जो राजा घुमा देगा धर्म चक्र;
तेल की चासनी में देखकर
जो बाण मारेगा (लक्ष्य पर)-
उसी राजा को कन्या ब्याह दूँगा।
पाँचाल देश में मेला जुटा था।
कन्या द्रोपदी ने तप किया था।
महादेव ने वर दिया था-
तीन लोक के मालिक, पति-प्राप्ति का वर दिया था।
श्रीकृष्ण जी ने मन में सोचा-
(अब) बिना अर्जुन के लक्ष्मयबेध कौन करेगा?
पाण्डव कुल का, पता तक नहीं था। क्रमशः