सिनेमा: ऐतिहासिक:
जिस प्रकार भारतीय संस्कृति में गहन आस्था रखने वाले हिंदी के मूर्धन्य साहित्यकार
श्री जयशंकर प्रसाद प्राचीन भारत के अतीत के सौन्दर्य पर मुग्ध होकर, अपने नाटकों
के लिए इतिहास का वह युग चुना; जिसमें हमारी संस्कृति अपने पूर्ण वैभव पर थी
और चन्द्रगुप्त मौर्य, कालिदास, स्कंद गुप्त, ध्रुवस्वामिनी तथा राज्यश्री आदि नाटकों का
प्रणयनकिया। उसी प्रकार भारतीय चलचित्र निर्माताओं ने भी अपनी ऐतिहासिक फिल्मों के
लिए नकेवल इस महान युग के चरित्रों या घटनाओं को चुना, बल्कि संपूर्ण भारतीय
इतिहास के गौरवपूर्ण प्रसंगों को अपनी फिल्मों का विषय बनाया।
ऐतिहासिक फिल्मों में एक वर्ग ऐसी फिल्मों का भी है, जो सन्तों और भक्तों के
व्यक्तित्वएवं कृतित्व पर आधारित हैं; जैसे – सन्त मीराबाई – 1929, कबीर
कमाल – 1930,सन्त तुलसीदास – 1935, सन्त तुकाराम, भक्त चेता – 1936,
सन्त तुलसीदास – 1939,भक्त सूरदास, भक्त कबीरदास – 1942, भक्त रैदास
-1943, धन्ना भगत – 1944,मीराबाई – 1947, सन्त तुकाराम – 1948, सन्त
जनाबाई, भक्त पुण्डलीक – 1949,श्री चैतन्य महाप्रभु – 1953, तुलसीदास – 1954,
जगतगुरु शंकराचार्य, स्वामी विवेकानंद- 1955, राजरानी मीरा – 1956, नरसी भगत,
सन्त रघु – 1957, गोपीचंद – 1958,माया मछेन्द्र – 1960, अंगुलिमाल – 1961,
गोस्वामी तुलसीदास – 1964, गोपीचंद – 1965, तुलसीदास – 1990 आदि।
इसके अतिरिक्त ऐतिहासिक फिल्मों के अंतर्गत तीन प्रकार की फिल्में उपलब्ध होती
हैं – पहली शुद्ध रूप से इतिहास पर आधारित, दूसरी इतिहास के साथ कल्पना से
अनुप्रेरिततथा तीसरी केवल काल्पनिक राज्यों से सम्बन्धित; जिनका संयुक्त विवरण
प्रस्तुत है। हिंदी फिल्मों के अवाक् युग में 1917 में अशोक, 1920 में चन्द्रगुप्त,
1923 में सिंहगढ़, 1924 में सती पद्मिनी और रजिया बेगम, 1925 में अदले जहांगीर
तथा राणा प्रताप,1926 में सिराजुद्दौला, 1927 में मेवाड़ का सिंह, अनारकली, लव
आॅफ ए मुगल प्रिंस, 1929 में पृथ्वीराज चैहान, राजपूतानी, 1930 में उदयकाल का
प्रमुख रूप से उल्लेख किया जाता है। क्रमशः