सिनेमा: सवाक् पौराणिक:
पौराणिक फिल्मों के अनेक निर्माता विविध प्रासंगिक कथाओं में से किसी प्रेरक
या रोचक मूल कथा को लेकर भी चित्रांकित करते रहे। 1931 से हिंदी सिनेमा
में सवाक् फिल्मों का दौर शुरू हुआ। 1931 के बाद भी यद्यपि चार पांच वर्षों
तक अवाक् फिल्में बनती रहीं, तथापि सवाक् फिल्मों का ज्यादा बोलबाला रहा।
इस दशक की पौराणिक फिल्मों में राजा हरिश्चंद्र, देवी देवयानी, प्रह्लाद, शकुंतला,
द्रौपदी – 1931; सती सावित्री, मीरा बाई, भतृहरि, माया मछेंद्र, भक्त प्रह्लाद,
विष्णु माया, राधेश्याम, श्यामसुंदर, सुभद्रा हरण, अयोध्या का राजा, इंदर सभा,
पूरन भगत, पवित्र गंगा – 1932; सुलोचना, सैरंध्री, भोलाशंकर, महाभारत, राजा
गोपीचंद,भक्त ध्रुव, रामायण, सेतु बंधन, लंका दहन, कृष्ण सुदामा, राधा कृष्ण,
सती अनुसुइया, सती महानंदा – 1933; सीता, वामन अवतार, अजामिल, विष्णु
भक्ति, हरि भक्ति, नंद के लाला, देवकी, नारी दुर्गा, भक्त के भगवान – 1934;
कृष्ण शिशुताई, श्याम सुंदर – 1935; सती पिंगला – 1937; गोपाल कृष्ण, भक्त
ध्रुव, गोरख आया, राजा गोपीचंद – 1938; रुक्मिणी दुर्गा – 1939; संत ज्ञानेश्वर,
अलख निरंजन – 1940 प्रमुख रहीं।
1941 में मधुसूदन, संत सुख; 1942 में भरत मिलाप; 1943 में शकुंतला,भक्तराज;
1944 में महारथी कर्ण, द्रौपदी, प्रभु का घर; 1945 में श्रीकृष्णार्जुन युद्ध, शंकर पार्वती,
सुभद्रा हरण, श्रीकृष्ण भक्ति; 1946 में उर्वशी, रुक्मिणी स्वयंवर, भक्त प्रह्लाद, वाल्मीकि,
देवकन्या; 1947 में मोहन, कृष्ण सुदामा, भक्त ध्रुव, मेरे भगवान, भक्त के भगवान,
चुद्रहास, भगवती, परशुराम; 1948 में रामवाण, अजामिल, श्री रामभक्त हनुमान, जय
हनुमान, भक्त विल्व मंगल, सावित्री सत्यवान, सती विजया, गोपाल भैया; 1949 में राम
प्रतिज्ञा, राम विरह, शबरी, गिरधर गोपाल, अहिल्या उद्धार, जय भीम, वीर घटोत्कच,
नर नारायण; 1950 में श्रीगणेश महिमा, राम दर्शन, श्रीकृष्ण दर्शन, अलख निरंजन, सती
नर्मदा, हर हर महादेव, वीर भीमसेन, गुरु दक्षिणा, भीष्म प्रतिज्ञा, भगवान श्रीकृष्ण, श्री
राम अवतार नामक पौराणिक फिल्मों का निर्माण हुआ। क्रमशः