लोकगाथा : लक्श्य ए २
आओ माँ सन्ध्या! हमारे घर आओ।
गायों और बालकों की सेवा-रक्षा करने वाली-
मालू2 के पत्तों में (तुम्हारी) पूजा (सामग्री) सजाऊँगा।
गाय की पूँछ के साथ सन्ध्या आईं।
दूध की ठेकी3 के साथ सन्ध्या माता आईं।
सन्ध्या माता आई, आँगन में बैठ गईं।
फिर उठी सन्ध्या, मंजी4 में गई, (फिर) तिमंजिले में।
(फिर उठी सन्ध्या दीपक में बैठ गई)।
दीपक के आधार से बोलने लगीं-
सुहागिन, तुमने अपने पति के लिए दीपक क्यों नहीं जगाया?
काहे का दीपक बनाऊँ, काहे का आधार?
पानी का दीपक मूल में ही नहीं जगता।
दीपक के लिए चाहिए कर्पूरी-सुगन्धी घी।
(तब) कैलाश-पर्वत से कर्पूरी-गाय मंगाई (गई)।
कपिला गाय का होता है कर्पूर-गंधी घी।
जगजा दीप, मेरे पति के लिए, यज्ञ की सारी रात।
जाग दियड़ा (तू) पूरी रात। क्रमशः